पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१९४. तार : बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको

[लाहौर
नवम्बर ७, १९१९]

गत ३१ तारीखका पत्र[१] अभी लाहौर में मिला। खेद है कि कैफियत संतोषजनक नहीं लगी। मामलेको वकीलके परामशीर्थ[२] दे रहा हूँ। वकीलकी राय मिलने पर उत्तर दे सकूँगा।

[अंग्रेजीसे]
बाम्बे लॉ रिपोर्टर, खंड २२,
  1. पत्र इस प्रकार था : "निर्देशानुसार मैं आपके २२ तारीखके पत्रको प्राप्ति स्वीकार करता हूँ और आपको यह सूचित करता हूँ कि माननीय मुख्य न्यायाधीशको खेद है कि वे आपके जवाबको संतोषजनक नहीं मान सकते। तथापि मुख्य न्यायाधीश महोदय यह माननेको तैयार हैं कि आप यह नहीं जानते कि आप एक पत्रकारके विशेषाधिकारोंकी सीमा पार कर रहे थे, बशर्ते कि आप यंग इंडियाके अगले अंक में साथ भेजे जा रहे क्षमा-याचना के पाठको इसी रूपमें प्रकाशित कर दें।"
    क्षमा-याचनाकी शब्दावली इस प्रकार थी : "९ अगस्त १९१९ को यंग इंडियामें हमने अहमदाबाद के जिला न्यायाधीश श्री कैनेडी द्वारा बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको लिखा एक निजी पत्र प्रकाशित किया था और उसी तारीखको उक्त पत्रपर हमने कुछ टीका-टिप्पणी भी की थी! इस सम्बन्ध में हमारा ध्यान इस ओर दिलाया गया है कि जबतक उक्त उच्च न्यायालय में उक्त पत्र सम्बन्धी कुछ प्रश्न विचाराधीन हैं तबतक इस पत्रको प्रकाशित करना था उसपर टिप्पणी करना मुनासिव नहीं था। अब हम इस लेख द्वारा खेद व्यक्त करते हैं और उक्त न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायाधीशोंसे इस बात के लिए क्षमा-याचना करते हैं कि हमने वह पत्र प्रकाशित किया और उसपर टिप्पणी की।" गांधीजीने ११ दिसम्बरको क्षमा-याचनाके इस पाठके बारेमें अपने विचार लिख भेजे थे; देखिए "पत्र : बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको", ११-१२-१९१९।
  2. गांधीजीने इस सम्बन्धमें वल्लभभाई पटेलकी राय माँगी थी। महादेव देसाईने १६ नवम्बरको गांधीजीको लाहौर यह तार भेजा था : "वल्लभभाईसे मिला। उनके विचारसे पत्रका प्रकाशन विशेषाधिकारोंके अन्तर्गत ही था; तथापि जबतक मामला निर्णयाधीन है यह स्पष्टतः न्यायालयको मानहानि है।"