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१९५. पत्र : सर जॉर्ज बार्न्ज़को

२, मुजंग रोड
लाहौर
[नवम्बर ७, १९१९]

माननीय सर जॉर्ज बार्न्ज़, के॰ सी॰ बी॰

सदस्य, वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्
वाणिज्य और उद्योग विभाग

[दिल्ली]

हमारी आपकी जो बातचीत[१] हुई थी उसके संदर्भमें आगामी दक्षिण आफ्रिकी आयोगके सामने विचारार्थ विषयोंकी सूचीमें जो कमसे कम बातें शामिल करनी हैं, उन्हें एक टिप्पणीके रूपमें संलग्न कर रहा हूँ।

इस टिप्पणीको यह मानकर लिखा गया है कि जनरल स्मट्स आयोगके सामने केवल ट्रान्सवालमें भारतीयोंके व्यापार करनेके हकोंका प्रश्न ही रखनेकी सोच रहे हैं।

यदि ऐसा है, तो यह आयोग किसी प्रकार भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्नोंको हल नहीं करेगा।

नया कानून जमीनकी मिल्कियत और व्यापार करने के अधिकारोंसे सम्बन्ध रखता है और उनपर विपरीत असर डालता है। इसलिए ऐसा सुझाव दिया गया है कि व्यापार करने और भू-स्वामित्वका प्रश्न, यानी कि १८८५ का कानून आयोग के विचारार्थ रखा जाये, और साथ ही कस्बा कानून और स्वर्ण-कानून जिस हदतक कस्बों या स्वर्ण क्षेत्रों में भारतीयोंके जमीन रखने या व्यापार करनेके अधिकारोंपर असर करते हैं, उस हदतक आयोग उनपर भी विचार करे।

संघ सरकार तथा भारत सरकार दोनोंको यह बात स्पष्ट रूपसे समझ लेनी चाहिए कि नये कानूनमें, जिस हदतक वह भारतीयोंके मौजूदा अधिकारोंको कम करता है, परिवर्तन किया जाना चाहिए और आयोगके फैसले ऐसे नहीं होने चाहिए जिनसे भारतीयोंके मौजूदा अधिकारोंमें कोई कमी होती हो। यदि उपर्युक्त दो मामूली शर्तें पूरी नहीं की जातीं तो सम्भावना है कि आयोग मौजूदा अधिकारोंके लिए हानिकर सिद्ध होगा।

मेरा सुझाव या तो पूराका पूरा स्वीकार किया जाना चाहिए अन्यथा इसे पूराका पूरा अस्वीकार कर दिया जाये।

इस सुझावको पेश करते हुए में यहाँकी अत्यंत नरम आम रायके और जोहानिसबर्ग में हाल में हुए दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके सम्मेलन द्वारा की गई मांगों के विरुद्ध जा रहा हूँ।

  1. देखिए "दक्षिण आफ्रिका विषयमें मेंटपर टिप्पणी", ३-११-१९१९।