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पत्र : सर जॉर्ज बार्न्सको


जैसा कि 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने व्यक्त किया है यहाँ [भारत] का जनमत सारे संघमें व्यापारके अधिकार और जमीनकी मिल्कियतका अधिकार और अंतर-प्रान्तीय प्रवासका अधिकार दिये जानेके पक्षमें है। इसका अर्थ है कि प्रवासियोंको ऑरेंज फ्री स्टेटमें प्रवेश करने और वहाँ व्यापार करने तथा जमीन रखनेके अधिकार भी दिये जायें। [गोरी] जनताकी वर्तमान मनःस्थितिमें यदि जनरल स्मट्स स्वयं चाहते भी हों तो भी इस माँगको पूरा कर सकना कठिन होगा।

सम्मेलनकी माँगें तो और भी वृहद हैं। उसमें राजनीतिक दर्जा फिर स्थापित करने और सभी कानूनी अयोग्यताओंको समाप्त कर देनेकी माँग शामिल है। यद्यपि यह और यही उद्देश्य लक्ष्यमें रखना चाहिए, फिर भी में समझता हूँ कि यह व्यावहारिक राजनीति नहीं है कि इसे तात्कालिक लक्ष्य मानकर इसके लिए कोशिश की जाये।

परन्तु भारतीयोंकी माँगपर और 'टाइम्स ऑफ इंडिया' द्वारा व्यक्त की गई अपेक्षाकृत आसान माँगपर कोई आग्रह आयोग द्वारा न भी किया जाये, तो भी यह बात भलीभाँति समझ लेनी चाहिए कि भारतीयोंके मौजूदा अधिकारोंमें कोई भी कमी नहीं की जानी चाहिए।

चूंकि संघ सरकारने ट्रान्सवालमें व्यापार तथा सम्पत्ति रखने के अधिकारका प्रश्न प्रवर समिति द्वारा, और फिर हाल ही के एक कानून द्वारा उठाया है, इसलिए आयोगसे इन दोनों सवालोंपर गोरे लोगोंके पूर्वग्रहोंको झकझोरे बगैर ही विचार करनेको कहा जा सकता है। यह स्मरण रखना चाहिए कि हालका कानून पास होनेके समयतक ट्रान्सवालमें भारतीयोंको उसी स्तरपर व्यापार करनेके परवाने पानेका हक था जैसे कि यूरोपीयोंको और वे मौजूदा कानूनके अनुसार बंधक स्वीकार करके या सीमित दायित्ववाली (लिमिटेड) कम्पनियाँ बनाकर वास्तवमें जमीनके मालिक बनते थे। मैं चाहता हूँ कि ट्रान्सवालमें साधारण सफाई प्रतिबन्धोंके अंतर्गत जमीनकी सीधी मिल्कियत तथा व्यापारके अधिकार कानूनन दिये जायें। यह माँग अधिक नहीं है क्योंकि इतना अधिकार तो उन्हें व्यवहारतः प्राप्त ही रहा है।

यह तो रहा आयोग के सामने विचारणीय विषयोंको रखनेके संबंध में।

प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमका अमल असंतोषजनक ढंगका है जिसे कूटनीतिक स्तरपर कार्रवाई करके सुधारा जा सकता है और आयोगको इस बारेमें तकलीफ देनेकी आवश्यकता नहीं है। ध्यान देने योग्य मुद्दे ये हैं :

(१) भारतीय अधिवासियोंको एक प्रांतसे दूसरे प्रान्त में बसनेके लिए नहीं बल्कि कामके सिलसिलेमें या किसी औपचारिक उत्सव आदिमें सम्मिलित होनेकी या अधिवासके प्रान्तमें जानेके लिए गुजरने की अनुमति मिले। बिना किसी शुल्कके पूरी सुविधाएँ उन्हें दी जानी चाहिए।
(२) दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए लोगोंकी आवश्यकताएँ पूरी करनेके लिए नये भारतीयोंके प्रवेशका आधार बेहतर तथा और अधिक उदार होना चाहिए।
(३) एकाधिक पत्नियोंको अपने पतियोंके पास आनेकी अनुमति देनेमें अधिक उदारता होनी चाहिए। उनके या उनके बच्चोंके लिए कानूनी हक चाहे न हों।