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फीजी

भू-स्वामित्वके हकोंकी जाँच करनेकी माँग तो हम कर ही सकते हैं; वह तो हमारा न्यूनतम प्राप्य है। हमें इस ओर अधिक सतर्क रहना है कि आयोगको वर्तमान अधिकारों में कटौती करनेका हक न मिलने पाये। नये कानूनके पास होनेसे पूर्व जो अधिकार हमें प्राप्त थे आयोगको उनमें कमी करनेका अधिकार हो ही नहीं सकता। दक्षिण आफ्रिका में भारतीयोंका आना लगभग बन्द हो गया है। गिरमिट प्रथाके बन्द हो जानेसे अब प्रश्न सिर्फ वहाँ रहनेवाले भारतीयोंके हकोंका बच गया है। उन्हें प्रामाणिक रूपसे व्यापार करने तथा जमीनकी खरीद-बिक्री करनेकी छूट मिलनी ही चाहिए। इस विषय में मतभेदकी गुंजाइश नहीं है। भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकाके गोरे केवल मजदूरोंके रूपमें गुलाम बनाकर कदापि नहीं रख सकते।

सौभाग्य से श्री एन्ड्रयूज हमारे भाइयोंकी मदद के लिए वहाँ जानेवाले हैं। उनकी सेवाओंका मूल्यांकन तो किया ही नहीं जा सकता। जहाँ कहींसे भारतीयोंकी दुःखभरी पुकार सुनते हैं, उनकी सहायताके लिए वहाँ जा पहुँचते हैं। फीजी, लंका और पंजाब इस बातके साक्षी हैं। दक्षिण आफ्रिकामें तो वे गोरे और भारतीय दोनोंके निकट समान रूपसे परिचित हैं। इसलिए उनके दक्षिण आफ्रिका जानेसे हमारे भाइयोंमें हिम्मत आयेगी और हमें भी आशा होती है कि न्याय प्राप्त किया जा सकेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ९-११-१९१९

१९७. फीजी

थोड़े दिनों पहले तक आशंका थी कि फीजीमें रहनेवाले हमारे गिरमिटिया भाइयों और बह्नोंके बन्धन इस वर्षके अन्त में भी नहीं टूट पायेंगे। फीजीकी विधान सभा में प्रस्ताव पास किया गया था कि भारतीय मजदूरोंकी गिरमिटकी अवधि अगस्तके महीने में समाप्त की जायेगी। जिस प्रथाके कारण हमारी स्त्रियोंकी प्रतिष्ठापर आँच आती हो उस प्रथाको हम पलभरके लिये भी सहन नहीं कर सकते। यदि श्री एन्ड्रयूज फीजी जाकर इस सड़ांधके सम्बन्ध में हमें सूचित न करते तो हम अभीतक सचेत न हुए होते। सौभाग्य से जो ताजा समाचार मिला है उससे गिरमिटकी अवधि बढ़नेका भय जाता रहा है और भारत सरकारको इस आशयको सूचना मिल चुकी है कि जिन पेढ़ियोंमें श्री एन्ड्रयूज द्वारा सुझाये गये सुधार नहीं किये जा सकते, उन पेढ़ियों में तो गिरमिट पहली जनवरीसे ही टूट जायेगी, लेकिन जो पेढ़ियाँ उपर्युक्त सुधार करने को तैयार हो जाती हैं वे शर्तनामेकी अवधिके पहले शर्तोंको तोड़कर मुक्त होनेका हरजाना लिये बिना बन्धन समाप्त नहीं करेंगी।

साधारण पाठक कदाचित् इस गुत्थीको न समझ सकें। फीजीके कानूनके अनुसार अनेक गोरोंके पास गिरमिटिया भारतीय मजदूर हैं। वे पाँच वर्षतक नौकरी करनेके लिये बँधे हुए होते हैं। नये गिरमिटिया मजदूरोंका जाना तो १९१७ में ही बन्द हो गया था, लेकिन श्री एन्ड्रयूज की रिपोर्टके बाद हमने यह माँग की कि जो बन्धनमें हैं