पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०५
भाषण : एन्ड्रयूजकी विदाई-सभा में

कि लेफ्टिनेन्ट गवर्नर महोदय प्रस्तावित तरीकेके अनुसार भी नेताओंको उपस्थित होने की अनुमति नहीं देंगे। अतएव कांग्रेस उप-समितिके लिए इसके सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं रह गया था कि वह लॉर्ड इंटरकी समितिके सामने उपस्थित न होने के अपने निर्णयपर[१] अड़ी रहे।

मैं इस सम्बन्ध में अपना गहरा खेद व्यक्त किये बिना नहीं रह सकता कि लेफ्टिनेन्ट गवर्नर महोदयने वह सुविधा देनेसे भी इनकार किया जिसे अधिकारके रूपमें माँगने का दावा एक साधारण अपराधी भी कर सकता है।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, १९-११-१९१९
 

२०२. भाषण : एन्ड्रयूजकी विदाई-सभामें[२]

लाहौर
नवम्बर १५, १९१९

गांधीजीने कहा कि मेरे लिए श्री एन्ड्रयूजके बारेमें अधिक कुछ कहना सम्भव नहीं है। वे मेरे भाईके समान हैं। हमारे बीच जो पवित्र प्रेमबन्धन है वह इस अवसरपर मुझे अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं करने दे रहा है। फिर भी मैं एक बात कहना चाहूँगा : श्री एन्ड्रयूज एक सच्चे अंग्रेज हैं। उन्होंने भारतके हितके लिए अपना सारा जीवन अर्पित किया है तथा अपने कार्यों और भारतके प्रति अपने प्रेम द्वारा वे मानो हमसे कहते रहे हैं, आप लोग ऐसा भले ही सोचते हों कि आप हमारे देशभाइयों द्वारा सताये हुए हैं परन्तु उनके बारेमें बुरा मत सोचिए, मेरी तरफ देखिए। यदि श्रोतागण श्री एन्ड्रयूज के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करना चाहते हैं तो उन्हें उनके प्रेमका अनुकरण करना चाहिए। श्री गांधीने अंधे प्रेमकी नहीं वरन् ऐसे जागरूक प्रेमकी हिमायत की जैसा कि भक्त प्रह्लादने अपने पिताके प्रति व्यवहारमें व्यक्त किया था। उन्होंने कहा, श्री एन्ड्रयूजके जीवनसे जो शिक्षा मिलती है वह यह कि यद्यपि

  1. इस सम्बन्धमें कांग्रेस उप-समितिके पत्रके लिए देखिए परिशिष्ट ८।
  2. यंग इंडियाने गांधीजी और एन्ड्रयूज के भाषणों के पाठ देते हुए आरम्भमें यह टिप्पणी जोड़ी थी : "१५ तारीखको लाहौरके ब्रैडलों हॉलमें एक अत्यन्त प्रभावशाली व भावनापूर्ण सभा श्री एन्ड्रयूज को विदाई देनेके लिए हुई जो दक्षिण आफ्रिका के लिए रवाना हो रहे थे, द्वारा पंजाब में संकटके समय की गई अत्यंत मूल्यवान सेवाओंके आभार व्यक्त करनेवाला प्रस्ताव लिए पेश करने को कहा गया तब गांधीजीने हिन्दीमें अपना भाषण दिया।" इस सभा के अध्यक्ष थे। सभामें उपस्थित लोगोंमें पंडित मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास भी थे। हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है। यंग इंडियामें प्रकाशित अंग्रेजी विवरणसे यह अनुवाद किया गया है।
१६-२०