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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आवश्यकता पड़ेगी। यह अनुमान हमने यह मानकर लगाया है कि जो आजकल जेल में हैं उनमें से अधिकांश लोगों पर से मुकदमे उठा लिये जायेंगे। यदि आप मेरे इस प्रस्ताव से सहमत हैं तो कृपया बम्बई के धनाढ्य पुरुषों से दान की याचना कीजिए और रकमें मुझे भेजते रहिये। मुझे धन वितरित करने के लिए विश्वासपात्र स्वयंसेवकों की भी आवश्यकता पड़ेगी। आप ऐसे स्वयंसेवक भी भेज सकते हैं। यदि सम्भव हो तो ऐसे ४ या ५ व्यक्ति भेज दीजिए।

स्वामी जी की यह अपील थोड़े में बहुत कुछ कह देती है। मुझे आशा है कि अनेक व्यक्तियों के हृदयों में इसका जैसा होना चाहिए वैसा असर होगा। मैं नहीं समझता कि इसमें मेरी सिफारिश की जरा भी जरूरत है। लोगों को सहायता की जरूरत है और उस दिशा में बम्बई की उदार जनता का कर्त्तव्य क्या है, इसपर मतभेद हो ही नहीं सकता। आशा है कि इन दुःखी परिवारों को मदद पहुँचाने के बारे में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होगी। इसमें किंचित् भी सन्देह नहीं किया जा सकता कि अमृतसर तथा अन्य स्थानों में जिनके प्राण गये हैं उनमें से बहुतेरे लोग निर्दोष थे। उनके परिवार सभी की सहायता के पात्र हैं, वे चाहे किसी भी दल या जाति के क्यों न हों। पाठकों को स्मरण होगा कि दिल्ली के आयुक्त ने गत ३० मार्च को हत अथवा आहत लोगों के परिवारों की सहायतार्थ चन्दा भेजने की अपील प्रकाशित की थी। परन्तु इस सिलसिले में यदि ऐसा कोई प्रश्न उठाया जाये कि हिंसा या इससे भी बुरे किसी अपराध के लिए सजा पाने वाले लोगों के परिवारों की सहायता करना कहाँ तक औचित्यपूर्ण होगा तो मैं विनम्रतापूर्वक कहूँगा कि उनके परिवारों के लोगों ने तो कोई अपराध नहीं किया; जब कि ऐसे बड़े -से-बड़े अपराधियों के परिवारों को भी जनता से सहायता पाने का पूरा हक होता है जिन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए जघन्यतम अपराध किये हैं, और इस प्रकार जिनका मंशा राजनीतिक अपराधियों के मुकाबले कहीं अधिक निन्दनीय है समाज का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि वह जाति या वंश का विचार छोड़कर जरूरतमन्द और गरीबों का पोषण करे। अतएव मुझे भरोसा है कि बम्बई के धनाढ्य व्यक्ति स्वामीजी की अपील के उत्तर में मुक्तहस्त होकर दान देंगे और वह भी तुरन्त। स्वामीजी ने मुझे तार द्वारा सूचित किया है कि धनकी तत्काल आवश्यकता है। रकमों की रसीदें बाकायदा भेजी जायेंगी। स्वामीजी के पत्र में इतनी ही महत्वपूर्ण दूसरी बात यह है कि उन्हें ऐसे विश्वासपात्र स्वयंसेवकों की जरूरत है जो पंजाब जाकर धन-वितरण में उनकी सहायता कर सकें। मैं ऐसे लोगों को सहायता के लिए आमंत्रित करता हूँ जिनके पास पंजाब जाने का साधन और अवकाश है। ऐसे स्वयंसेवकों में एक अनिवार्य गुण यह होना चाहिए कि वे श्रद्धानन्दजी के निर्देश के अनुसार और उनके पथ-प्रदर्शन में ही केवल न्यासियों के रूप में धन-वितरण कर सकें। उन्हें अपने राजनैतिक विचारों का प्रचार या एक साथ दो उद्देश्य पूरे करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। राष्ट्रीय कार्य में वास्तविक सफलता तभी मिल सकती है जब उसके कार्यकर्ता हाथ में लिये हुए काम में इतनी लगन और तन्मयता के साथ जुटने का गुण अपने अन्दर पैदा कर लें कि उनको अन्य किसी काम की सुधि ही न रह जाये। एक ही समय में अनेक कार्य करने की कोशिश करने पर हम किसी भी काम को भली प्रकार या