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भेंट : एक पत्रकारको

सन्तोषजनक रीति से पूरा नहीं कर सकते, बल्कि इससे हमारे इरादोंके बारेमें लोगोंको प्रायः सन्देह होने लगता है मेरी तरह पाठकगण भी यही चाहेंगे कि पंजाब जानेके लिए चुने गये स्वयंसेवकोंके किसी कामसे स्वामीजी द्वारा उठाया गया यह कल्याणकारी कार्य बिगड़ने न पाये।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २-८-१९१९

३. भेंट : एक पत्रकारको[१]

[ बम्बई

अगस्त ४, १९१९]

...यह पूछनेपर कि उनका विचार शीघ्र ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करनेका है अथवा नहीं, गांधीजीने कहा कि यह सब सरकार तथा निकट भविष्य में स्थिति सुधारनेके उसके प्रयत्नपर निर्भर करता है। उन्होंने कहा : मैं अपने कार्यक्रममें जल्दबाजी करके स्थितिको उलझाना नहीं चाहता, क्योंकि हो सकता है कि उससे असल सवाल आसानीसे आखोंकी ओट हो जाये। यदि सरकार पंजाबकी स्थितिको सुलझाने तथा रौलट अधिनियमको रद करनेके लिए शीघ्र ही कदम नहीं उठाती, तो मुझे बड़े दुःखके साथ पुनः सत्याग्रह प्रारम्भ करना पड़ेगा। अगर ऐसी नौबत आई तो में नजरबन्दीके आदेशको मद्रासकी हद पार करके तोडूंगा। क्योंकि वह दिशा अपेक्षाकृत बहुत अधिक शान्त है। उस हालतमें सरकारको हिंसा या उपद्रवकी बात उठाकर कोई खास कार्रवाई करनेका बहाना न मिल सकेगा।

मैंने उनसे पूछा कि क्या आप दक्षिण भारतके लोगोंके लिए फिलहाल कोई विशेष सन्देश देने तथा सत्याग्रहियोंका कर्त्तव्य निर्दिष्ट करने की कृपा करेंगे?

हाँ, मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक स्त्री-पुरुष और बालक हाथसे कातना और बुनना सीखे। मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक सत्याग्रही इसके प्रचारमें सहायक हो। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जरूरतका कपड़ा अपने घरमें तैयार करना सीख ले तो हमारी आजकी बहुत-सी समस्याएँ हल हो जायें। मैं आपसे कोई नई चीज शुरू करनेको नहीं कह रहा हूँ। इस तरहके कामके लिए आपको भारतके बहुत प्राचीन कालका ध्यान करना भी आवश्यक नहीं है, अभी तीस-चालीस साल ही हुए होंगे भारतके प्रत्येक गाँवमें करघे थे और लोग उन्हीं करघोंपर बुने हुए कपड़े पहनते थे। सामान्यतया हर घरमें चरखा चलाया जाता था। हाथसे सूत कातना नीचा काम नहीं है। महलोंमें रहनेवाली रानियाँ भी यह काम करती थीं। यदि इसको फिरसे शुरू कर दिया जाये तो हम देशका बहुत हित साध सकेंगे। इसके अच्छे परिणाम निकलनेकी मुझे बड़ी आशा है।

  1. इस भेंटका विवरण "सी० आर० एस० " के नामसे प्रकाशित हुआ था।