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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्रूरता थी। मैंने लाहौर तथा अन्य स्थानोंके अनेक लोगोंसे भाई परमानन्दके बारेमें पूछा है। उनमें से कोई ऐसा नहीं था जिसे उनके अपराधी होनेका विश्वास हो। उनमें से प्रत्येक व्यक्ति मानता है कि उनपर जो अपराध लगाया गया वह उन्होंने नहीं किया है। आतंकके बलपर अपना अस्तित्व बनाये रखनेवाली सरकारको बने रहनेका कोई हक नहीं है। ऐसी सरकार बहादुर स्त्री-पुरुषोंपर नहीं बल्कि बुजदिलोंपर शासन करती है। भाई परमानन्द काफी समय से जेलमें हैं। उनकी पत्नी व बच्चोंको (मैं समझता हूँ कि गैर-कानूनी ढंगसे) जब्तीके हुक्म द्वारा उनकी निजी सम्पत्तिसे वंचित कर दिया गया था। भाई परमानन्दके पत्रोंसे जाहिर होता है कि उनके मनमें कोई कटुता नहीं पैदा हुई है। इसके बजाय अंडमान में वे अपना जीवन धार्मिक आत्म- निरीक्षण करते हुए व्यतीत कर रहे हैं। ऐसे आदमीको कैद रखना सरकार के लिए मुनासिब नहीं है। मैं विश्वास करता हूँ कि पंजाबके माननीय लेफ्टिनेन्ट गवर्नर मामलेकी जाँच करेंगे और न सिर्फ यही बल्कि अंडमानके जेल अधिकारियोंसे भाई परमानन्द के बारेमें जानकारी प्राप्त करेंगे और उन्हें तुरन्त रिहा कर देंगे। मैं यह भी विश्वास रखता हूँ कि जनता तथा समाचारपत्र इस मामलेका अध्ययन करेंगे और सरकारसे भाई परमानन्दको रिहा कर देनेका आग्रह करेंगे ।

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, १९-११-१९१९
 

२०७. पत्र : महादेव देसाईको

गुजरांवाला
[नवम्बर २२,][१] १९१९

भाईश्री महादेव,

तुम्हारा लाला लाजपतराय वाला तार मिला। वे पैसे कैसे मँगवा सकते हैं, यह बात मेरी समझ में नहीं आई। उनके पास तो बहुत पैसे हैं। तथापि में उनके पुत्रसे मिलूँगा और खोजबीन करूँगा। तुम्हें मेरे सब लेख मिल गये होंगे।

आज भाई नरहरिका पत्र मिला, उससे तुम्हारे सोजीत्रा जानेकी बात मालूम हुई; किसलिये जाना पड़ा, सो नहीं जान पाया।

भाई नरहरिने निर्माण-कार्यके सम्बन्ध में लिखा है, इसे पढ़कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। थोड़े मकान बन जायें तो हम दिक्कतसे बच जायें। आज दिल्ली जा रहा हूँ और मंगलवारको सवेरे लाहौर पहुँचूँगा। मेरी डायरी तो तुम 'नवजीवन' में देख ही सकोगे।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ९८५६) की फोटो-नकलसे।
  1. इसी तारीखको गांधीजी गुजराँवालासे दिल्लीके लिए रवाना हुए थे और मंगलवार के दिन अर्थात् २५-११-१९१९ को लाहौर पहुँचे थे।