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२०८. गो-रक्षा कैसे की जाये?

गो-रक्षा के सम्बन्ध में अनेक भाई मुझे पत्र लिखते रहते हैं। जो अन्तिम पत्र मेरे नाम आया है, उसमें लिखा है कि मुझे स्वदेशी प्रचारका त्याग करके सबसे पहले गो-रक्षाका काम ही करना चाहिए, गो-रक्षाके सम्बन्धमें बहुत वर्ष हुए मैंने अपने विचार बना लिये थे। मेरे विचार चालू प्रयासोंसे बिलकुल पृथक हैं। मेरी धारणा है कि गो-रक्षा के नामपर हम जाने-अनजाने गो-हत्या करते हैं। लेकिन इस समय गो-रक्षा के सम्बन्ध में अपने समस्त विचारोंको पाठकोंके सम्मुख नहीं रखना चाहता। मौलाना अब्दुल बारीने मुझे जो पत्र लिखा है, आज उसमें से कुछ अंश उद्धृत कर देना चाहता हूँ। ये महोदय लिखते हैं :

हिन्दू-मुस्लिम एकताके सम्बन्धमें खिलाफत के लिए नियत किये गये प्रार्थना-दिवसपर हमें जो सफलता मिली है उसके लिए में आपका आभार मानता हूँ। आपने इस सम्बन्धमें जो रास्ता अपनाया है उसका मुसलमानोंपर, विशेषतया उन मुसलमानोंपर जो धर्मके प्रति निष्ठावान हैं, गहरा असर पड़ा है। अनेक उलेमाओंने आपको विशेष रूपसे बधाई देनेके लिए मुझे पत्र लिखे हैं। उनमें से एक फुलवारीके मौलाना सुलेमान साहब हैं। वे लिखते हैं कि उन्होंने भविष्य में स्वयं गो-हत्या न करनेका निश्चय कर लिया है और दूसरोंको भी गो-वध न करनेके लिए समझाया है। यदि आप जैसे व्यक्ति एकताके लिए मेहनत करते रहें तो देशकी उन्नति जल्दी होगी और झगड़के कारण भी दूर हो जायेंगे।

एकता स्थापित करने में मेरा कितना हिस्सा है, उसपर हम विचार करना छोड़ देते हैं। मैं उपर्युक्त पत्र में से पाठकोंके समक्ष जो सार उपस्थित करना चाहता हूँ वह तो इतना ही है कि हम यदि गो-रक्षा करना चाहते हैं तो वह मुसलमान भाइयोंकी सेवाके द्वारा ही संभव होगा। एक सज्जनने मुझे सन्देश भेजा है कि मुसलमानों के साथ गो-रक्षाके सम्बन्धमें शर्त करनेके पश्चात् ही हमें खिलाफत के बारेमें उनकी मदद करनी चाहिए। उपरोक्त पत्रमें इन सज्जनके प्रश्नका उत्तर आ जाता है। यदि हम प्रतिदान लेकर किसीकी मदद करते हैं तो उसमें न तो रस रहता है और न सार ही। खिलाफत के सम्बन्धमें मुसलमान भाइयोंने हमारी मदद नहीं माँगी है, लेकिन यदि हम उनको मित्र बनाना चाहते हों, और उन्हें भाई मानते हों तो उनकी मदद करना हमारा फर्ज है। उसके फलस्वरूप वे गो-हत्या बन्द कर दें तो यह बात अलग है। उसमें कोई अनोखापन नहीं है। लेकिन वे गो-वध बन्द करें इसी शर्तपर हम उनकी मदद करें सो नहीं हो सकता। कर्त्तव्य निबाहनेमें प्रतिदानके लिए स्थान कहाँ? लेकिन जिनके मनमें गो-रक्षाके पक्षमें तीव्र भावना हो, उनका स्पष्ट कर्त्तव्य है कि वे खिलाफतके सम्बन्धमें मुसलमानोंकी पूरी-पूरी मदद करें।