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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऐसी मददका अवसर हमें दिसम्बर मासमें पुनः प्राप्त होगा। १३ से १६ तारीखतक सुलह सम्बन्धी जशन मनाये जायेंगे। मेरा पक्का विश्वास है कि जबतक मुसलमान भाइयोंको सन्तोष नहीं होता तबतक हम उन जशनोंमें भाग नहीं ले सकते। लड़ाईके परिणाम में जिनका भारी स्वार्थ निहित है, जबतक उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती, जबतक उन्हें अपनी स्थिति के बारेमें पूरा भय बना हुआ है तबतक उनके लिए सुलह-सम्बन्धी उत्सवोंका कोई अर्थ नहीं हो सकता।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-११-१९१९
 

२०९. भाषण : खिलाफत सम्मेलन, दिल्लीमें[१]

[नवम्बर २३, १९१९]

अध्यक्ष महोदय और भाइयो,

आप लोग मुझे बैठे रहने के लिए क्षमा करेंगे क्योंकि मैं खड़े होकर भाषण नहीं दे सकता। यह कहा गया है कि हिन्दुओंने मुसलमानोंको उनके दुःख तथा विरोधकी भावना में हिस्सा बँटाकर कर्ज के बोझ से दबा दिया है, किन्तु मैं मानता हूँ कि उन्होंने अपना फर्ज अदा करने से ज्यादा कुछ नहीं किया है। आपने हिन्दुओंके लिए धन्यवादका एक प्रस्ताव पास किया है। परन्तु कर्त्तव्य निभाना और कर्ज चुकाना, इन दोनों बातोंमें धन्यवाद देनेकी कोई बात नहीं होती। यह तो उनका फर्ज था क्योंकि हालमें एकताकी बहुत चर्चा हुई है। परन्तु एकता तथा भाईचारेकी सच्ची भावनाकी कसौटी यह है कि एक दूसरेके दुखः-सुखमें बराबर हिस्सा बँटाया जाये। बाईस करोड़ हिन्दू उस समय कैसे शान्ति पा सकते हैं जब उनके आठ करोड़ मुसलमान भाई भयंकर व्यथासे तड़प रहे हों? आठ करोड़की व्यथा भारतके शेष २२ करोड़ निवासियोंकी भी व्यथा है। अतएव यद्यपि शान्ति-संधि हो गई है लेकिन भारतको सच्ची शान्तिका कोई अनुभव नहीं हुआ है।

आगे श्री गांधीने कहा कि में वाइसराय तथा सरकारको बताता रहा हूँ कि यदि उनका इरादा मुसलमानोंको सन्तुष्ट करनेका है तो टकके लिए न्यायपूर्ण तथा सम्मानजनक शर्तोंपर शान्ति स्थापित की जाये और तब सभी भारतीय पूरे उत्साहसे विजयोत्सवोंमें शरीक होंगे। इसके बाद उन्होंने श्रोताओंसे आग्रह किया कि वे अपनी आत्मिक शक्तिमें विश्वास न खोयें और आशा न छोड़ें।

उन्होंने कहा, आपका पक्ष न्यायोचित है और यदि आप सफलता चाहते हैं तो बलिदानोंके लिए तत्पर रहना आपका कर्त्तव्य है, क्योंकि आपके इतने पवित्र उद्देश्यके लिए निश्चय ही बलिदानोंकी आवश्यकता होगी। आपको धर्मके साथ खिलवाड़ नहीं करना

  1. इस सम्मेलनमें केवल मुसलमान प्रतिनिधियोंने भाग लिया था।