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भाषण : खिलाफत सम्मेलन, दिल्ली में

चाहिए और न ऐसे महत्त्वपूर्ण मामलोंको छोटा ही समझना चाहिए। आपको पूरी विनम्रता, दृढ़ता, ईमानदारीके साथ और सफलताके लिए कृतसंकल्प होकर अपने काममें लगना चाहिए। इसके बाद उन्होंने यह घोषणा की कि आगामी विजयोत्सवोंमें न शरीक होने के निर्णय के बाद सभी हिन्दुओं और मुसलमानोंका यह कर्त्तव्य होगा कि अपना व्रत सच्ची श्रद्धासे निभायें। इस अवसरपर बँटनेवाली कोई भिक्षा या भोजन स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए और अगर आतिशबाजी वगैरह हो या रोशनी वगैरह की जाये तो उसे भी देखने नहीं जाना चाहिए। किन्तु जो लोग स्वेच्छा से इन उत्सवों और मेलों में जाना चाहें, उनके सामने किसी भी प्रकारकी रुकावट नहीं डालनी चाहिए।

श्री गांधी से भी अपने विचार व्यक्त करनेकी प्रार्थना की[१] गई। वे बड़ी ईमानदारीसे बोले और प्रस्तावका विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि मैं यहाँ अपने विचार धार्मिक दृष्टिसे नहीं धर्मनिरपेक्ष दृष्टिसे व्यक्त करने आया हूँ। मैं एक सत्याग्रही हूँ और मेरा धर्म विपक्षीको किसी भी तरह की चोट पहुँचाने से रोकता है। बहिष्कारका अर्थ है आर्थिक दंड देना, और में हर तरहके दंडके विचारका विरोध करूँगा। मुझे निश्चित रूपसे पता है कि मौलाना हसरत व्यावहारिक कामके हिमायती हैं परन्तु इस प्रकारका व्यावहारिक काम शायद किसी भी उपयोगी नतीजेकी ओर हमें न ले जायेगा। मैं बहिष्कारके विचारके विरोधमें हूँ।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २९-११-१९१९
 

२१०. भाषण : खिलाफत सम्मेलन, दिल्लीमें[२]

नवम्बर २४, १९१९

हकीम साहिब[३] और भाइयो,

आप मुझे क्षमा करेंगे कि मैं खड़ा होकर बोलने में असमर्थ हूँ। मेरा स्वास्थ्य ऐसा नहीं है कि बहुत देरतक खड़ा रह सकूँ। आपके सामने बैठकर बोलनेके लिए क्षमा माँगने में मुझे हमेशा लज्जा आती है, आपने आज जो सम्मान मुझे दिया है उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ। मैं सदासे कहता और लिखता आया हूँ कि जो लोग देश-सेवा करना चाहते हैं उन्हें धन्यवादकी आवश्यकता नहीं, देशसेवा स्वयं ही अपना

  1. गांधीजीसे विदेशी वस्तुओंके बहिष्कारके प्रस्तावपर बोलनेको कहा गया था।
  2. गांधीजीने हिन्दुओं और मुसलमानोंके सम्मिलित अधिवेशनकी अध्यक्षता की थी। इसमें उन्होंने हिन्दी में भाषण दिया था, हिन्दी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। उनके भाषणकी संक्षिप्त रिपोर्ट यंग इंडियाके ३-१२-१९१९ और १०-१२-१९१९ के अंकमें प्रकाशित हुई थी।
  3. हकीम अजमल खाँ।