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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पारितोषिक है। उन लोगोंको जिन्होंने अपनेको मातृभूमिको सेवाके लिए अर्पित कर दिया है देशके प्रति अपनी भक्ति से सुख मिलता है। उनके लिए इससे परे कोई और सुख नहीं। हम सब—ईसाइयों, पारसियों, हिन्दुओं और मुसलमानों—के इकट्ठे होनेका उद्देश्य है खिलाफतकी समस्यापर विचार करना और यह निश्चय करना कि हमें क्या करना चाहिए। कल मुसलमानोंका एक अलग सम्मेलन हुआ और उन्होंने कई प्रस्ताव पास किये। आज भारतमें पैदा हुए और रहनेवाले दूसरे सब सम्प्रदायोंके प्रतिनिधि भी उसी समस्यापर विचार करनेके लिए जमा हुए हैं। कुछ लोगोंको हिन्दुओं और मुसलमानोंके पारस्परिक सौहार्दपर आश्चर्य होता है। पर वे एक ही मातासे जन्मे हैं, एक ही धरतीपर रहनेवाले हैं—वे एक दूसरेसे प्रेम न करें तो करें क्या! जब यह कहा जाता है कि खिलाफत के प्रश्नपर हिन्दुओंको मुसलमानोंका साथ देना चाहिए तो कुछ लोगोंको आश्चर्य होता है। पर मेरा कहना है कि यदि हिन्दू और मुसलमान भाई-भाई हैं तो एक दूसरेके दुःखमें हाथ बँटाना उनका कर्त्तव्य है, इस सम्बन्ध में एक ही प्रश्न उठ सकता है और वह यह है कि क्या मुसलमान ठीक रास्तेपर हैं और क्या उनका लक्ष्य न्यायसंगत है? यदि वह न्यायसंगत है तो इस धरतीके बच्चे-बच्चेका यह कर्त्तव्य है कि उनसे सहानुभूति रखे, हमें यह नहीं समझना चाहिए कि खिलाफतकी समस्यापर केवल मुसलमानोंको ही दुःख होगा। नहीं, यह प्रश्न सभी भारतवासियोंका है।

अब मैं यहाँ उपस्थित अपने हिन्दू भाइयोंसे कुछ कहूँगा। आज मुझे भाई आसफ अलीने दो पत्र लिखे हैं जिनमें उन्होंने आशा व्यक्त की है कि खिलाफत समिति गो-संरक्षणके प्रश्नको सुलझाने में साधन बनेगी। पर मैं जोर देकर यह कहना चाहता हूँ कि यदि एक भाई कष्टमें हो तो दूसरे भाईका कर्त्तव्य है कि उसे हर प्रकारसे सहायता दे। जब हिन्दू संकटमें हों तो मुसलमानों को उनकी सहायता करनी चाहिए और जब मुसलमान संकट में हों तो हिन्दुओंको उनकी सहायताके लिए आगे आना चाहिए। हमें अपनी सहायता और सहानुभूतिके लिए कोई बदला नहीं चाहिए। अगर आप मुसलमान भाई सही रास्तेपर हैं तो हम आपको बिना शर्त सहायता देंगे। यह हिन्दुओंका पैतृक अधिकार है। यदि मुसलमान स्वेच्छासे किसी बातपर झुकनेको तैयार हों तो हम उसका स्वागत करेंगे, पर हम लालचके लिए लड़ने वाले सैनिकोंकी भूमिका स्वीकार नहीं करेंगे। हम जो कुछ देंगे अपना कर्त्तव्य समझकर देंगे और उसके एवजमें केवल भगवान्से पारितोषिक माँगेंगे। मैं आप हिन्दू भाइयोंसे कह दूँ कि गाय मुझे उतनी ही प्रिय है जितनी आपमें से किसीको भी। पर हम मुसलमानोंसे लड़कर गायकी रक्षा नहीं कर सकते। आप गायकी रक्षा तभी कर सकते हैं जब आप मेरा उदाहरण सामने रखें और अपना कर्त्तव्य निभायें। (तालियाँ) मेरी बात पूरी तरह सुन लीजिए। तालियाँ बजानेका मौका नहीं है। अगर आपको उस ध्येयके न्यायसंगत होने में शंका हो जिसके लिए मुसलमान लड़ रहे हैं तो में श्री लॉयड जॉर्जको गवाह के रूपमें पेश करूँगा। जब सिपाहियों और रंगरूटोंकी जरूरत हुई तो यह आश्वासन दिया गया कि मुस्लिम प्रदेशों पर किसीकी दृष्टि नहीं है और ये प्रदेश मुसलमानोंके पास ही रहेंगे, अब यदि मुसल-