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भाषण : खिलाफत सम्मेलन, दिल्लीमें

मानोंके असंतोष और दुःखको दूर करना है तो न्याय किया जाना चाहिए। खिलाफतके सम्बन्ध में वे न्यायसंगत आधारपर लड़ रहे हैं और सब हिन्दुओं और पारसियोंको उनके दुःखमें हाथ बँटाना चाहिए। हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम ब्रिटेनकी जनता, सम्राट् तथा जिम्मेदार मन्त्रियोंको दिखा दें कि हम मुसलमानोंकी भावनाका आदर करते हैं और उनके लक्ष्यको न्यायसंगत मानते हैं। यह उचित नहीं है कि आठ करोड़ मुसलमानोंको मानसिक यातना सहन करनी पड़े, वे सही मार्गपर हैं और उनकी सहायता की जानी चाहिए। १७ अक्तूबरको पंजाबको छोड़कर सारे भारतने उपवास रखा, हड़ताल और प्रार्थना की, पर यह काफी नहीं है। खिलाफतका प्रश्न बहुत बड़ा प्रश्न है और सारे भारतका प्रश्न है। उसके लिए उसी अनुपात में सच्ची लगनकी जरूरत है। यहाँ मैं भारतीयोंसे कह दूँ कि वे हताश न हों, नैराश्य मनुष्यकी सब ताकत छीन लेता है, हम अब भी ब्रिटेनको बता सकते हैं कि इस समस्याका हमपर कितना गहरा असर है और हमारे त्यागके लिए तैयार हुए बिना उसे हमारी बात सुननी पड़ेगी। हमारे लिए यह अभीष्ट नहीं कि हम यह आशा रखें कि हमारी इच्छा पूरी होगी। किन्तु ३० करोड़ लोगोंकी बलिदानके लिए तत्परता उनकी सब इच्छाओं को पूरा कर सकती है, न तो सरकार और न दुनियामें कोई यह कह सकता है कि हमारे भाग्य में शान्ति है। इसके विपरीत हम एक विपत्तिकी छायामें रह रहे हैं। शान्ति है कहाँ? मुझे तो वह नहीं दिखती, टर्कीके साथ कोई शान्ति सन्धि नहीं हुई। और जबतक टर्कीके साथ एक सम्मानजनक शान्ति सन्धि नहीं हो जाती तबतक मुसलमानोंके लिए उत्सव में भाग लेना सम्भव नहीं। और यह हम सबके लिए दुःखदायी होगा।

पहले तो उनके मनमें इतना शोक है कि वे किसी हँसी-खुशीमें भाग ले ही नहीं सकते। और यदि उन्हें इसके लिए मजबूर किया भी गया तो उनकी भावनाएँ सच्ची प्रसन्नता से कोसों दूर होंगी। इस पाखण्डपूर्ण दिखावेका कोई अर्थ नहीं निकलता, चूंकि आठ करोड़ मुसलमान टर्कीके सुलतानको अपने धर्मका अधिष्ठाता मानते हैं; अतः उनके पड़ोसियोंके नाते हमें भी उनकी भावनाओंका आदर करना चाहिए और कल जो प्रस्ताव[१] उन्होंने पास किया है उसमें उनका साथ देना चाहिए। भगवान् जानता है कि हम उनके साथ हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि उनके दुःखका समुचित कारण मौजूद है, अन्यथा हम उनके साथ न होते।

महात्माजीने आगे कहा कि अगर अल्लास और लॉरेन फ्रांसको वापस नहीं दे दिये जाते तो फ्रांसको शान्ति नहीं प्राप्त होगी, इसी तरह भारतके लोग कह सकते हैं कि जबतक खिलाफतके सम्बन्धमें आठ करोड़ मुसलमानोंकी वेदनाका शमन नहीं होता, भारतके लोगोंको उत्सवसे कोई सरोकार नहीं होगा। किन्तु यदि यह प्रश्न सन्तोषजनक रूपसे सुलझा लिया जाता है तो सभी भारतीय अपने-आप ही आदरके साथ इस खुशी में भाग लेंगे। उन्होंने आगे कहा :

  1. इस प्रस्तावमें भारतीय जनतासे अनुरोध किया गया था कि वह शान्ति समारोहोंमें भाग न ले।