पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


धनवान लोग कहते हैं कि अगर हम उत्सव में भाग नहीं लेंगे तो सरकार नाराज हो जायेगी। वे रुपयेको भगवान् मानते हैं। लोगोंको भय है कि बड़े-बड़े आदमियोंके बिना वे कुछ नहीं कर सकते। वे यह नहीं समझ पाते कि अगर उनका लक्ष्य न्यायपूर्ण है तो भगवान् उनके साथ है। यदि हम अपने उद्देश्य में, अपनी माँगके विषयमें एक हैं तो एक दिन बड़े-बड़े लोग भी हमारे साथ होंगे। १३ दिसम्बरको[१] हम एक दूसरा ही भारत देखेंगे। श्री लॉर्ड जॉर्जको हमारे सामने झुकना ही पड़ेगा, किन्तु यदि यह न हो तो हमें अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए। इसलिए मुसलमानोंने निश्चय किया है कि यदि सरकार उनकी न्यायोचित माँग पूरी नहीं करेगी तो वे सरकारको सहयोग देना बन्द कर देंगे। ऐसा करनेका उन्हें पूर्ण अधिकार है। सचमुच यह एक बहुत मुश्किल काम है। पर उन्होंने अपने अन्तरतमके विचार सरकार के सामने स्पष्ट शब्दों में रख दिये हैं। इसका अर्थ साफ-साफ यह है कि यदि आप हमारी सहायता नहीं कर सकते तो यह हमारा अधिकार है कि हम आपको सहायता देना बन्द कर दें। साफ-साफ शब्दोंमें हम यह कह दें कि हमें कुचलने के काममें हम आपको सहयोग और सहायता नहीं देना चाहते। आप अपनी सहायता अपने ही पास रखें। हम इस बात के लिए तैयार हैं कि आपमें और हममें किसी प्रकारका आदान-प्रदान न हो। हम आपकी सहायता नहीं करेंगे और न आपसे हम सहायता चाहते हैं। मुसलमान यह महत्त्वपूर्ण निर्णय कर भी चुके हैं।

किन्तु उन्होंने एक ऐसा कदम भी उठाया है जो हास्यास्पद है, क्योंकि उन्होंने यह भी निश्चय किया है कि यदि जिसकी उन्हें आशंका है वह हो जाये तो वे धीरे-धीरे ब्रिटिश मालका बहिष्कार करेंगे। मैं उनको राय दूँगा कि वे इस निश्चयको रद कर दें। मैं उनको बता दूँ कि सहयोग वापस लेने और मालके बहिष्कारमें आकाश-पातालका अन्तर है। यह किसी भी मनुष्यका अधिकार है कि जब चाहे अपना सहयोग वापस ले ले। किन्तु कोई राजनैतिक कदम उठानेसे पहले हमें विश्वमतका खयाल कर लेना चाहिए। हम जो करना चाहते हैं वह बहिष्कारके द्वारा नहीं कर सकते। हमें दुनियाकी सहानुभूति प्राप्त करनी चाहिए और इसलिए मैं नम्रतापूर्वक आपसे प्रार्थना करूँगा कि सहयोग वापस लेनेके विचारको अपनाकर मालके बहिष्कारका विचार छोड़ दें। आज हमारे सामने एक ही प्रस्ताव है जो शान्ति-उत्सव में भाग न लेनेके बारेमें है। इस प्रस्तावपर हिन्दुओंको मुसलमानोंका साथ देना चाहिए।

कुछ लोग कहते हैं कि आनेवाले उत्सवमें भाग न लेनेके कारणोंमें हमें पंजाबकी वीभत्स घटनाओं को भी शामिल कर लेना चाहिए। मैं इस बातको माननेको तैयार नहीं हूँ, क्योंकि मेरी राय इससे भिन्न है। पंजाबके बारेमें जितना सन्ताप मुझे है उतना किसी औरको नहीं हो सकता। परन्तु इस सन्तापके बावजूद में पंजाबके प्रश्नको शान्ति समारोह के प्रश्नसे नहीं उलझाऊँगा। शान्ति समारोहका प्रश्न खिलाफतसे सम्बन्धित है। मैं समझता हूँ कि खिलाफतका प्रश्न शान्तिसे इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि जब-तक वह हल नहीं हो जाता, हमें यह कहने का अधिकार है कि ऐसे उत्सवसे हमारा कोई

  1. शान्ति समारोहों के उद्घाटनके लिए यही तारीख निर्धारित की गई थी।