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पंजाबकी चिट्ठी—४

ही कहूँगा। बहुत ही जरूरी मामलोंको छोड़कर विवादास्पद मुद्दोंपर में चुप ही रहा हूँ; न तो अपने भाषणोंमें मैंने कुछ कहा और न समाचारपत्रोंमें ही कुछ लिखा। लेकिन चूँकि अब में शीघ्र ही दक्षिण आफ्रिका जा रहा हूँ, और वहाँसे वापस आने में मुझे कमसे कम चार महीने लग जायेंगे, इसलिए मैंने जो-कुछ देखा और सुना है उसके बारेमें कुछ कहे बिना ही मेरा वहाँ चले जाना ठीक न होगा। मैं मुख्यतः मुख्य बातोंके सम्बन्धमें अपने विचार बिना किसी भूमिकाके, सीधे पेश कर देना चाहता हूँ। संक्षेपमें मेरी स्थिति यह है : जाँचके बाद मेरी यह दृढ़ धारणा हो गई है कि लोगोंके नाराज होनेका चाहे जितना बड़ा कारण क्यों न रहा हो फिर भी जिस कायरतापूर्ण तथा क्रूर ढंगसे अमृतसर तथा अन्य स्थानोंपर अंग्रेजोंकी हत्या की गई है वह हर प्रकारसे अक्षम्य है। यही बात गिरजाघरोंको जला डालनेके सम्बन्धमें भी कही जा सकती है। भारतीयोंसे प्रेम करनेवाली[१] और ईसामसीहकी सच्ची अनुगामिनी कुमारी शेरवुडपर जो घातक हमला हुआ वह तो मेरी नजरमें सबसे अधिक निन्द्य और कायरतापूर्ण कृत्य था। लेकिन जिस तरह किसी भी प्रकारका बचाव या बहाना पेश किये बिना मैं उपर्युक्त अपराधोंकी निन्दा कर रहा हूँ, ठीक उसी प्रकार बल्कि उससे कहीं अधिक तीव्र भावनाके साथ और पूर्णरूपसे में जलियाँवाला बागमें इरादतन किये गये कत्लेआमकी मलामत करता हूँ।

इंग्लैंडके इतिहासमें ग्लैकोका[२] नरसंहार मेरे देशकी प्रतिष्ठाको जितना मलिन करता है अमृतसरमें हुए कत्लेआमसे भी हमारी प्रतिष्ठाको उतना ही बट्टा लगता है। मैं कोई सुनी-सुनाई बात नहीं कह रहा हूँ। मैंने प्रत्येक हकी-कतकी, जितनी कि किसी व्यक्तिके लिए सम्भव है, पूरी सावधानीसे जाँच की है और मेरे खयालसे यह ऐसा कलंक है जो वर्णनसे परे है, अक्षम्य है और जिसके पक्षमें कुछ भी कहा जाना असम्भव है। और अब दो शब्द मार्शल लॉके अन्तर्गत हुई घटनाओंके सम्बन्धमें : जिन लोगोंको पेटके बल चलनेके लिए मजबूर किया गया था उनसे मैं मिला हूँ, जिन्हें अपमानित करनेके लिए नंगा किया गया था और जिन्हें धूलमें लोटना पड़ा था उनसे भी मिला हूँ तथा उनसे भी जिनपर चाबुकोंकी गहरी मार पड़ी थी। ईसाई धर्मग्रन्थोंमें मनुष्यको ईश्वरकी प्रतिमूर्ति कहा गया है। उसी पवित्र मानव शरीरको ऐसे सैकड़ों कृत्योंका भाजन बनाया गया और भ्रष्ट किया गया है। जलियाँवाला बागके नरसहारके कारण मेरे देशपर जो कभी न मिटनेवाला दाग लगा है उससे फौज और पुलिसके पाशविक बलके द्वारा भारतीय मर्दानगीका इस प्रकार क्रूरतापूर्ण और जान-बूझकर किया गया अपहरण कम घृणित नहीं है। पंजाबके उपद्रवके दिनोंमें किये गये इन अंतिम क्रूरतापूर्ण कृत्योंके बारेमें एक अंग्रेजके नाते मुझे यही चन्द शब्द कहने हैं। अपने भारतीय सहयोगियोंके साथ जाँचका कार्य करते हुए मैं

  1. अंग्रेजी पाठ में है "जिनसे प्रत्येक भारतीयको प्रेम था"।
  2. विलियम तृतीयके राज्यकालमें घटित एक दुःखद हत्याकांड।