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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
इस अत्याचारको कभी भूल नहीं सका, और यहाँ मैंने जो कुछ भी मदद की है वह वास्तव में प्रायश्चित्त तथा देशकी लाज बचानेके खयालसे की है।
लाहौरमें रहते हुए में नित्य प्रातःकाल सूर्योदयका दृश्य देखने के लिए मॉण्टगुमरीके यूक्लिप्टस के वृक्षोंसे भरे हुए बगीचेमें जाता रहा हूँ। और वहाँ मैं एकान्त में अपने दिनभरके कर्त्तव्योंके बारेमें निश्चय कर लिया करता था। इस प्रकार विचार करते हुए आज सवेरे मुझे अपने धर्मग्रंथ में लिखा यह वाक्य याद आया : वह सज्जन और दुर्जन, दोनोंको सूर्यका प्रकाश प्रदान करता है। इसलिए हे मानव! ईश्वरकी भाँति तू भी पूर्णता प्राप्त कर।" ये शब्द मेरे प्रभु ईसामसीहने कहे थे। उन्होंने अपने अनुयायियोंको यह सिखाया था कि वैर मोल लेना या वैर करना नहीं, बल्कि क्षमा करना ही जीवनका सर्वोच्च सिद्धान्त है। मानवका उद्देश्य प्रेम होना चाहिए, घृणा नहीं। मानव-जातिकी सहायता करने और उसे तारनेके लिए अवतार लेनेवाले बुद्धदेवने भी यही शब्द कहे थे। और आज लाहौरमें अपने निवासके अन्तिम दिन, मेरे मनमें भी यही बात उतरी।
जो घाव हो चुके हैं उनका जहर पूरी तरह साफ करनेके लिए हमें गहराईतक पहुँचकर उनकी जाँच करनी होगी। लेकिन शल्य-क्रियामें अन्तिम कार्य घाव भरनेका, उसपर मरहम-पट्टी करनेका होता है न कि उनको कुरेदनेका।
आज जब आप इन कुकृत्योंकी छानबीन कर रहे हैं और वे आपके सामने आ रहे हैं तब मेरी आपसे यह प्रार्थना है कि आप वैर-भावका पोषण न करें, क्षमा-भावका सिंचन करें, द्वेष और घृणाके अँधेरेमें न रुके रहें, प्रेमके दिव्य प्रकाशमें निकल आयें।

मेरे शब्द

यह था श्री एन्ड्रयूजका भाषण। उनके बोलनेके पहले मैं अपना भाषण दे चुका था, क्योंकि मुझे तो उनके प्रति धन्यवादका प्रस्ताव प्रस्तुत करना था। उनका भाषण मैंने पहले पढ़ा नहीं था। फिर भी चूंकि मेरे शब्दोंमें उनके भाषणकी प्रस्तावना अथवा व्याख्या मिल जाती है और चूंकि दोनों भाषण जनताके सामने एक महत्त्वपूर्ण सत्यको उद्घाटित करनेकी दृष्टिसे ही दिये गये थे इस कारण में अपना भाषण यहाँ पुनः दे रहा हूँ। मेरे भाषणका सार यह है :

"मेरे लिए श्री एन्ड्रयूज भाईके समान हैं। उनके विषयमें कुछ भी कहना मुझे कठिन प्रतीत हो रहा है। हमारे बीचका पवित्र सम्बन्ध मुझे कुछ कहने से रोकता है। फिर भी मैं इतना तो कह सकता हूँ कि श्री एन्ड्रयूज एक पक्के अंग्रेज हैं लेकिन उन्होंने अपना जीवन भारतको अर्पित कर रखा है। वे अपने कृत्योंसे हमसे यह कहते जान पड़ते हैं : 'यदि आपको यह लगे कि मेरे देशवासी आप लोगोंपर जुल्म करते हैं तो आप उनके बारेमें कटुताका भाव अपने दिलमें न लाइये, मेरी ओर निहारिये।' यदि हमारे मनमें श्री एन्ड्रयूजके प्रति आदरकी भावना हो तो हमें उनके प्रेमका अनुकरण करना चाहिए। हमारा प्रेम अन्धा न होना चाहिए बल्कि वैसा हो जैसा