पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


"इस सत्यको स्वीकार करके हमें उसकी दिशामें अग्रसर होना चाहिए। श्री एन्ड्रयूजके जीवनसे यही शिक्षा मिलती है, उनका प्रायश्चित्त भी इसी निमित्त है और उनकी गूढ तपस्याका भी यही अभिप्राय है। मैंने उन्हें लोगोंके घरोंमें घंटों चुपचाप बैठे देखा है। हमने उनकी अवगणना भी की है तो भी उन्होंने कभी क्रोध प्रदर्शित नहीं किया। मैंने उन्हें हमारे घरोंमें जो कुछ मिला उसे सन्तोषके साथ खाते हुए देखा है। मैंने उन्हें स्वर्गीय श्री गोखले द्वारा क्षणिक सूचना देनेपर दक्षिण आफ्रिकाके[१] लिए रवाना होते हुए देखा है। यह उनकी मौन और सच्ची तपस्या है। दक्षिण आफ्रिका तथा अन्य देशोंमें उनके द्वारा हमारे लिए किया गया कार्य ऐसी तपश्चर्याका है जिसे हम स्पष्ट देख सकते हैं और इसलिए उसे तो हम जानते हैं। लेकिन जो तपश्चर्या वे अदृश्य रूपमें करते हैं वह इसकी अपेक्षा अधिक मूल्यवान है।

"लेकिन श्री एन्ड्रयूजके प्रति सम्मान-भाव होनेके कारण ही हमें अंग्रेजोंके प्रति अपनी तिरस्कार-भावनाका त्याग कर देना चाहिए—ऐसा नहीं है। यदि हम ऐसा करते हैं तो उससे हमारी कार्यसिद्धि भी शीघ्र होनेकी पूरी सम्भावना है। क्योंकि हम यदि उनके समान क्रोध किये बिना, धीरजसे, सावधानीके साथ सत्यका पालन करते हुए निरन्तर अपना कार्य करते रहें तो अंग्रेजोंको हमपर अपनी दुर्भावपूर्ण मनोवृत्तियोंका प्रयोग करनेका कोई कारण ही न रह जायगा और जैसे वे अकेले होते हुए भी अनेक व्यक्तियोंका काम कर सकते हैं वैसे ही एक भारतीय भी उनके रास्तेपर चलकर अनेक व्यक्तियोंका काम कर सकेगा और भारतकी प्रगतिको तीव्रतर बना सकेगा।

गुजरांवाला

पिछले सप्ताह में गुजरांवाला गया था। यह तीस हजार लोगोंकी आबादीवाला एक छोटा कस्बा है। वहाँ भी मैंने अमृतसरके समान ही प्रेमका अनुभव किया। वहाँ मुझे गवाहियोंकी जाँच करनी थी, इसी कारण श्री पुरुषोत्तमदास टंडन[२] तथा डॉक्टर परसरामको साथ ले गया था। हम लोग दीवान मंगलसेनके यहाँ, जो इस समय जेलमें हैं, ठहरे थे। इससे मुझे उनकी धर्मपत्नीके दर्शनका लाभ मिला और उनके आतिथ्यसत्कारको पाकर उनका ऋणी बना। लाहौर में में श्रीमती सरलादेवीके यहाँ ठहरा हुआ हूँ और उनकी अनन्य प्रेम-सरितामें अवगाहन करता रहता हूँ। सरलादेवीसे में १९०१ में मिला था, वे प्रख्यात ठाकुर परिवारकी हैं। उनकी विद्वत्ता और सरलताका प्रमाण मुझे अनेक रूपोंमें मिला करता है। अमृतसरमें में डॉक्टर किचलू और डॉक्टर सत्य- पालकी धर्मपत्नियोंसे भी मिला था—ये सब बहनें अपने दुःखोंको बड़े धीरजके साथ सहन कर रही हैं।

गुजरांवालामें एक स्त्रियोंकी और एक पुरुषोंकी दो बड़ी-बड़ी सभाएँ हुई थीं। मैंने स्त्रियोंको चरखेके महत्त्वसे अवगत कराया और उन्होंने सूत कातनेका वचन दिया।

  1. दिसम्बर १९१३ में।
  2. इलाहाबादके प्रसिद्ध वकील; प्रख्यात हिन्दी प्रेमी और देशभक्त।