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पत्र : वालजी गोविन्दजी देसाईको

गुजरांवाला रणजीतसिंहकी जन्मभूमि है। जिसमें वे जन्मे और पले उस मकानको भी मैंने देखा। इस स्थानको लोगोंने बहुत नुकसान पहुँचाया है, मैंने इसकी ओर उनका ध्यान भी आकर्षित किया। मेरा अनुभव यह है कि किसी भी स्थानपर मुझे लोगोंको उनकी गलतियोंकी प्रतीति कराने में कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ी। हमसे भूल हुई है—यह सब स्वीकार करते हैं। गुजरांवाला में अधिकारियोंने प्रतिशोध लेने तथा क्रूरता बरतने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उसका वर्णन करना आवश्यक नहीं है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३०-११-१९१९
 

२१२. भाषण : कसूरमें

[नवम्बर २६, १९१९]

उस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाका[१] जिक्र करनेके बाद श्री गांधीने बताया कि कांग्रेस उपसमितिने हंटर कमेटीको भविष्यमें सहयोग न देनेका निश्चय क्यों किया है; इसके बाद जिन लोगोंने उपसमितिके सामने अभी बयान नहीं दिये थे, श्री गांधीने उन्हें निमन्त्रण दिया कि वे अब अपने बयान दें, उन्होंने भीड़ द्वाराकी गई ज्यादतियोंकी भी भर्त्सना की और कहा कि भारतकी मुक्ति धैर्य और शान्तिसे यातना सहते हुए बुराईका प्रतिरोध करके ही हो सकती है। उन्होंने कहा कि सब प्रकारकी कठिनाइयोंको दूर करनेके लिए सत्य और निर्भयता आवश्यक है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-१२-१९१९
 

२१३. पत्र : वालजी गोविन्दजी देसाईको

लाहौर
मार्गशीर्ष सुदी ५ [नवम्बर २७, १९१९][२]

भाईश्री वालजी,

इसमें शक नहीं कि आपके ऊपर दुःखका पहाड़ टूट पड़ा है—आपको क्या आश्वासन दूँ? आपका ज्ञान आपकी मदद करे—करेगा ही—अपने भाईके उन सब

  1. खिलाफतके नोटिस लगानेके कारण कसूरके सब डिविजनल ऑफिसर श्री मार्तंडनने दो भारतीयोंकी पिटाई की थी। मार्सडनको बादमें मालूम हुआ कि नोटिस आपत्तिजनक नहीं थे। उसने माफी मांगी और आहतोंमें से एकको १०) हर्जानेके रूपमें दिये। गांधीजीने घटनाके सम्बन्धमें मार्तंडनसे बातचीत की और सभा में बताया कि मार्सडनने अपनी गलतीके लिए "समुचित रूपसे" क्षमा माँगी है।
  2. श्री वालजीके बड़े भाई सुन्दरजी गोविन्दजी देसाईंका ८ और २२ नवम्बर, १९१९ के बीच देहावसान हो गया था, यह पत्र उसके तुरन्त बाद लिखा गया था।