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पंजाबकी चिट्ठी - ५


मैंने सुझाव दिया कि यदि उनमें ताकत हो तो वहिष्कारकी सलाह देनेके स्थानपर वे सरकारके साथ सहयोग न करनेका प्रस्ताव पास करें। इस प्रकारके प्रस्ताव पास करनेका हमें हक है और यह हमारा कर्त्तव्य भी हो सकता है। यह प्रस्ताव भी सबको अच्छा लगा और सर्वसम्मतिसे पास हुआ।

अन्ततः रातको एक विशाल [आम] सभा हुई। उसमें विषय समिति द्वारा निश्चित किये गये प्रस्तावोंको पास किया गया और बहिष्कार सम्बन्धी प्रस्तावपर गरमागरम बहस हुई। सामान्यतः विषय समिति द्वारा निश्चित किये गये प्रस्तावोंपर आम सभा में चर्चा नहीं की जाती लेकिन इस अवसरपर वाद-विवाद करनेकी पूरी छूट दे दी गई थी। माननीय श्री रजाअली, श्री अब्दुल्ला हारून, श्री सैयद हुसैन और मैं बहिष्कारके विरोधमें बोले। लोगोंपर प्रभाव अच्छा पड़ा। भाषणोंको सबने शान्तिपूर्वक सुना। और अन्तमें प्रस्ताव बहुमतसे स्वीकृत हो गया। यह सभा रातके तीन बजे तक चली। इसमें हाजी-उल-मुल्क हकीम अजमलखां, डॉक्टर अन्सारी, मौलाना अब्दुल बारी साहब आदि अनेक प्रख्यात मुसलमान उपस्थित थे।

हिन्दू-मुसलमानोंकी सभा

दूसरे दिन हिन्दू-मुसलमानोंकी सम्मिलित सभा हुई जिसमें संवाददाताओंको आमन्त्रित किया गया था और 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के श्री शेपर्ड भी उपस्थित थे। इस सभा में मुझे अध्यक्षपद दिया गया था; सभा संगम थियेटरमें हुई थी; सभा भवन खचाखच भर गया था उसमें उपस्थित होनेके लिए टिकट बेचे गये थे। इसमें संन्यासी स्वामी श्री श्रद्धानन्दजी, सहारनपुरके श्री बोमनजी, सिन्धके डॉक्टर चोइथराम[१], प्रयागके श्री कृष्णकान्त मालवीय आदि उपस्थित थे। आदरणीय पंडित मालवीयजी, पंडित मोती लाल नेहरू, श्री चित्तरंजन दास आदिकी ओरसे तार प्राप्त हुए थे जिनमें उपस्थित न हो सकनेके लिए खेद प्रकट किया गया था और सभाकी सफलताके लिए मंगलकामना की गई थी।

सम्मेलनके मंत्री श्री आसफ अलीने जो पर्चे प्रकाशित किये थे उनमें उन्होंने सूचित किया था कि इस सभामें गोरक्षा तथा पंजाबके प्रश्नपर भी विचार किया जायेगा। इन दोनों बातोंके सम्बन्ध में अनेक लोगोंको आशा थी कि इन विषयोंपर बहस जरूर होगी। दोनों विषयोंपर मेरे विचार पूर्व निश्चित थे। यदि गोरक्षाके सवालपर चर्चा करने दूँ तो उद्देश्यको हानि पहुँचेगी। यदि पंजाबको चर्चाका विषय बनने दूँ तो पंजाबको और उसी प्रकार खिलाफतके प्रश्नको ठेस पहुँचेगी। मुझसे यह होगा नहीं। इस कारण मेरी स्थिति विषम हो गयी थी। मुझपर ऐसा उत्तरदायित्व आ पड़ा था जिससे में अपने परिचितोंको दुःख पहुँचाये बिना नहीं रह सकता था। इसलिए मुझे अपने भाषण में इन सब बातोंका उल्लेख करना पड़ा। मैं [यहाँ] उस भाषणका सार देता हूँ ताकि पाठक मेरा मतलब समझ सकें। मेरा जो भाषण अंग्रेजीमें प्रकाशित किया गया है उसे भी मैंने ही तैयार किया था लेकिन

  1. डॉक्टर चोइथराम गिडवानी।