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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसमें मैंने सब दलीलें पेश नहीं की थीं। मेरे तथा अन्य सब लोगोंके भाषण सिर्फ उर्दूमें थे, और मुझे यह दिखाई पड़ रहा था कि श्रोतागण सब-कुछ समझ रहे हैं।

मेरा भाषण

"आपने कल समस्त हिन्दू जाति और विशेषतया मेरे प्रति धन्यवादका जो प्रस्ताव पास किया है उसके लिए में आपका आभारी हूँ। मुझे यह भी कहना चाहिए कि खिलाफतके सम्बन्धमें हिन्दुओं और अन्य लोगोंने जो मदद की है वह सिर्फ कर्त्तव्य समझकर की है और फर्ज तो कर्जके सदृश है, उसका बदला कैसा? भाई आसफ अलीने इस सभाके सम्बन्धमें जो पत्र लिखे थे उसमें उन्होंने गोरक्षाके प्रश्नकी ओर इशारा किया था। मेरी नम्र राय यह है कि इस स्थानपर गोरक्षाके सवालको हिन्दू उठा ही नहीं सकते। यदि हम एक राष्ट्र हैं, यदि हम आपसमें भाई-भाई होनेका दावा करते हैं तो हिन्दू, पारसी, ईसाई, यहूदी जो भी भारतमें जन्मे हैं, उनका स्पष्ट कर्त्तव्य है कि वे अपने देशभाई मुसलमानोंकी, उनके दुःखमें, मदद करें। जो सहायता बदला पानेकी इच्छासे की जाती है वह भाड़ेकी सहायता है। इस तरहकी सहायता भाईचारेकी निशानी नहीं मानी जा सकती। जिस तरह मिलावट किये गये सीमेन्टसे चिनाई नहीं की जा सकती उसी तरह भाड़ेकी मददसे भाई-बन्दी नहीं पनपती। हिन्दुओंको अपनी उच्च परम्पराके अनुसार मुसलमान भाइयोंकी मदद करनी चाहिए। मुसलमानोंकी परंपरा यदि उन्हें हिन्दुओंके दुःख दूर करनेको प्रेरित करती है तो हम खिलाफतमें मदद करें अथवा न करें, तो भी वे गो-हत्या बन्द कर सकते हैं, इसीलिए यद्यपि में गायके प्रति पूज्य भाव रखने-वाले किसी भी हिन्दूसे कम नहीं हूँ तो भी में शर्तके साथ खिलाफत सम्बन्धी प्रश्नपर हरगिज मदद करना नहीं चाहता। मैं तो मानता हूँ कि बिना किसी शर्तके मदद करनेमें ही गायकी अधिक रक्षा है। जब हम शर्तोंका विचार किये बिना ही एक दूसरेकी सेवा किया करेंगे तभी और उसी गति से हममें प्रेम और भ्रातृ-भावना बढ़ेगी और गो-रक्षाका मार्ग सरल होगा। इसलिए मुझे उम्मीद है कि सब हिन्दू किसी प्रकारकी बिना शर्त के खिलाफतके प्रश्नको अपना ही प्रश्न मानेंगे।"

"हमारी दूसरी समस्या पंजाबका प्रश्न है। कुछ सज्जनोंने यह माँग की है कि पंजाबके दुःखके कारण भी हमें शांति सम्बन्धी समारोहों में भाग नहीं लेना चाहिए। इस बारेमें भी मेरा मतभेद है। पंजाबके लोगोंके दुःखोंकी मैंने बहुत जाँच की है, उनसे जितना में दुःखी हुआ हूँ संभव है अन्य लोग भी उतने ही दुःखी हुए हों, लेकिन कोई मुझसे अधिक दुःखी हो सकता है, इस बातको में स्वीकार नहीं कर सकता। ऐसा होनेपर भी में यह मानता हूँ कि हम खिलाफतके प्रश्नके साथ इस प्रश्नको नहीं मिला सकते। मेरा तो विश्वास है कि पंजाबको चाहे कैसे ही कष्ट क्यों न सहन करने पड़े हों तो भी हम स्थानीय कारणोंको लेकर पूरे साम्राज्य से सम्बन्धित समारोहोंसे अलग नहीं रह सकते। पंजाबपर जो दुःख पड़ा उसको प्रकट करनेके लिए हमारे पास दूसरे साधन भी हैं। पंजाबके मामलेमें हमें न्याय नहीं मिला ऐसा कहकर भी हम शान्ति समारोहोंमें भाग लेनेसे नहीं रुक सकते, क्योंकि हमें न्याय मिलनेकी आशा है। उसके लिए हंटर समिति बैठी है, उसके लिए हमारे आयुक्त महोदय काम कर रहे हैं। समझौते से ही