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पंजाबकी चिट्ठी—५

 

एक पैसा ५०१ रुपए लाया

सभा में उपस्थित लोगोंमें भारी उत्साह देखने में आया। शान्ति समारोहोंमें भाग न लेने के अभिप्राय से [जनताको] प्रशिक्षित करने के लिए एक समिति नियुक्त की गयी। मैंने उसके खर्च के निमित्त धन इकट्ठा करनेका सुझाव दिया। उसके लिए मुझसे एक पैसा देनेके लिए कहा गया, मेरे पास तो वह भी न था। यह पैसा ख्वाजा साहब हसन निजामीने दिया। भाई सैयद हुसैनने उसे नीलामपर चढ़ाया और मियाँ छोटाणीने इसे ५०१ रुपए में खरीद लिया। इसी सभामें लगभग दस मिनटके अन्दर दो हजार रुपये आ गये। इसमें वे रकमें शामिल नहीं हैं जिन्हें बादमें भेज देनेका वचन देते हुए लोगोंने नाम लिखाये थे। प्रस्तावपर हकीम अजमलखां, स्वामी श्री श्रद्धा-नन्दजी, भाई कृष्णकान्त मालवीय, भाई बोमनजी आदि बोले थे। इन सबके भाषण शान्त किन्तु जोरदार थे।

मौलाना अब्दुल बारी साहब

इसके उपरान्त मौलाना अब्दुल बारी साहब अध्यक्षको धन्यवाद देनेके लिए खड़े हुए। उन्होंने कहा :

महात्मा गांधीजी गोरक्षाके प्रश्नको आजकी कार्यवाही में सम्मिलित करनेके बारेमें जो चाहें सो कहें, इसमें उनकी और हिन्दू भाइयोंकी शोभा है। लेकिन यदि मुसलमान हिन्दू भाइयोंकी मददको भूल जायें तो वे अपने परम्परागत सौजन्यको खो देंगे। में तो यह कहता हूँ कि खिलाफतके प्रश्नपर हमें उनकी मदद मिले चाहे न मिले तो भी हम और वे एक ही मुल्कके हैं, इसलिए हमारे लिए गो-वध बन्द करना उचित है। में एक मौलवीकी हैसियतसे कहता हूँ कि यदि हम अपनी मर्जीसे गो-वधका त्याग करते हैं तो उसमें हम अपने धर्मके विपरीत तनिक भी नहीं जाते। खिलाफतके प्रश्नपर हिन्दू भाइयोंने अपनी उदारताका जो परिचय दिया है उससे हम दोनोंके बीच भाईचारेकी जैसी वास्तविक भावना प्रस्फुटित हुई है वैसी किसी अन्य प्रश्नसे नहीं हुई है। में खुदासे दुआ माँगता हूँ कि दोनों कौमोंके बीच यह मुहब्बत हमेशा कायम रहे।

सभा में उपस्थित लोगोंने इन शब्दोंका "आमीन" कहकर स्वागत किया। इसके उपरान्त बारी साहबने खिलाफत के प्रश्नपर अत्यन्त भावनापूर्ण भाषण दिया और उसका लोगोंपर गहरा असर पड़ा।

हिन्दुओंका कर्त्तव्य

इस तरह खिलाफतकी सभा समाप्त हुई लेकिन इससे सब कुछ समाप्त नहीं हो गया, प्रत्युत हम सबकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। लेकिन इस समय में हिन्दुओंको ही लक्ष्य करके कुछ शब्द लिखना चाहता हूँ। वे इस मामले में बहुत मदद कर सकते हैं और ऐसा करके मुसलमानोंके दिलोंको वे जितना समीप ला सकेंगे उतना किसी और साधनसे नहीं। हिन्दू-मुसलमानोंके बीच एकता स्थापित होना—कोई छोटी-सी बात