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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है। आठ करोड़ लोग बाईस करोड़ लोगोंके प्रति सच्ची मैत्रीके भाव रखें, यह अत्यन्त वांछित स्थिति है। यह भी स्पष्ट है कि उनका एक-दूसरेसे दबकर रहना हितकर न होगा। इसलिए हमें स्वतन्त्रतापूर्वक और समानताके स्तरपर रहकर पारस्परिक प्रेमकी वृद्धि करनी है। ऐसे अवसर 'खिलाफत' ही प्रदान करता है। १३ से १६ दिसम्बर तक हमें तथा हमारे बालबच्चोंको आतिशबाजी अथवा रोशनी में भाग नहीं लेना चाहिए, हमें अपने घरोंमें बैठे रहना चाहिए। यदि बड़े लोग इस दिन उपाधियाँ लेना अस्वीकार कर दें तो [उनका] यह कार्य बहुत सराहनीय माना जायेगा। मौलाना अब्दुल बारी साहबने यह स्पष्ट कर दिया है कि गो-रक्षाके निमित्त मुसलमानोंके साथ झगड़ा करने अथवा बहुत धन व्यय करनेकी अपेक्षा यह मार्ग कहीं सीधा और सुगम है।

कसूरकी यात्रा

दिल्ली पहुँचने पर मुझे कसूरसे इस आशयका तार मिला कि वहाँके डिप्टी कलक्टरने एक मुसलमानको बहुत बुरी तरहसे मारा-पीटा है। उसका कारण यह था कि उसने उस अधिकारीके मकानकी दीवार पर खिलाफत सम्मेलनका एक नोटिस चिपका दिया था। नोटिस नितान्त निर्दोष था और उसे इस व्यक्तिने चिपकाया भी नहीं था। मुझे उस अधिकारीका यह कार्य बहुत ही अनुचित लगा। ब्रिटिश अधिकारी कानूनको अपने हाथमें ले लें, यह स्थिति मुझे असह्य जान पड़ी। इसलिए मैं डॉक्टर परसरामको, जो उस स्थानसे अच्छी तरह परिचित हैं, लेकर दिल्लीसे कसूर चला गया। वहाँ उस मुसलमान तथा एक अन्य मुसलमानकी, जिसपर भी मार पड़ी थी, गवाहियाँ लीं। इस बीच मुझे डिप्टी कलक्टर श्री मार्सडनकी चिट्ठी मिली जिसमें उन्होंने मुझे बातचीतके लिए बुलाया था। में उनसे मिला; बातचीत बहुत देरतक हुई। बातचीत के दौरान मुझे बताया गया कि उन्होंने उपर्युक्त मुसलमानसे क्षमा माँगी है और उसे दस रुपए दिये हैं। मैंने उनसे कहा कि उन्होंने निर्दोष व्यक्तिको बुरी तरह पीटा है इसलिए उन्हें सार्वजनिक रूपसे क्षमा-याचना करनी चाहिए; ब्रिटिश अधि- कारियोंके हाथों जनतापर मार पड़े ऐसा नहीं होना चाहिए। इसपर उन्होंने मुझे इस बातकी अनुमति दी कि उनकी क्षमा-याचना सार्वजनिक रूपसे प्रकट कर दी जाये। वह नोटिस उन्होंने फिरसे उस दीवारपर चिपकवा ही दिया था। इस मुलाकात के बाद मुझे तो तुरन्त ही एक सार्वजनिक सभामें जाना था। वहाँ तीन-चार हजार व्यक्ति एक मैदानमें इकट्ठे हो गये थे। उसमें जितने पुरुष थे उतनी ही स्त्रियाँ थीं। मैंने मार्सडन महोदयकी स्पष्ट शब्दोंमें की गयी क्षमा-याचनाको सभामें आये हुए लोगोंके सामने प्रकट कर दिया; लोग बहुत प्रसन्न हुए। कसूर लाहौरसे पैंतीस मील दूर है, इसकी जनसंख्या २०,००० के लगभग है। वहाँ लोगोंने अप्रैल मासमें बहुत ही निन्दनीय कार्य किये थे। उनके बारेमें मैंने सभामें जिक्र किया और चूंकि स्त्रियोंसे मुझे फिर मुलाकात करनेका अवसर न मिल पायेगा इसलिए मैंने उनसे चरखा चलानेके सम्बन्धमें भी निवेदन किया।