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पंजाबकी चिट्ठी—५

 

वजीराबाद

वहाँसे हम लोग दूसरे दिन वजीराबाद गये। वहाँ मार्शल लॉके दिनोंमें क्या गुजरी थी उसके सम्बन्धमें जाँच करनी थी। वजीराबाद एक छोटा नगर है लेकिन जंक्शन स्टेशन है। वहाँसे होकर मेन लाइनकी गाड़ियाँ भी जाती हैं। यह नगर लाहौरसे पचास मीलसे कुछ ज्यादा दूरीपर बसा हुआ है। वजीराबादमें लोग इतने आतंकित थे कि हमें कुछ स्थानों में ठहरने नहीं दिया गया और अन्तमें हमें एक गुरुद्वारेमें जगह मिल पाई। फिर भी लोगों में पहलेकी भाँति अदम्य उत्साह भरा हुआ था। लोग पूरा दिन 'दर्शनों' के लिए आते ही रहते थे। अब तो मैं 'दर्शन' से बुरी तरह ऊब उठा हूँ; एक ओर काम करूँ और दूसरी ओर दर्शन दूँ, यह सम्भव नहीं है। अन्तमें मुझे दरवाजे बन्द करके बैठना पड़ा। पूरा दिन लोगोंके कष्टोंकी रामकहानी सुनने में निकल गया।

निजामाबादकी यात्रा

वजीराबादसे निजामाबाद पौन मील भी नहीं है। वहाँके लोगोंका और वजीरा बादके लोगोंका अपराध एक जैसा ही माना गया है। निजामाबाद तंग गलीवाला एक छोटा-सा गाँव है। उसमें दो हजारकी बस्ती है। उसमें मुख्यतया मुसलमान बसे हुए हैं। मुसलमानों में अधिकांश लुहार हैं और हिन्दुस्तानमें अच्छेसे अच्छे चाकू यहीं बनते हैं। मैंने दुकानोंको देखा। लगभग सभी औजार पुराने थे परन्तु माल एकदम चमकदार और बढ़िया तैयार होता है। बहुत अच्छी किस्मकी लकड़ीवाली मूठें भी यहाँ तैयार की जाती हैं और बढ़िया-बढ़िया बन्दूकें हाथसे बनाई जाती हैं। मैंने एक दोनली बन्दूक भी देखी, उसपर बहुत नफीस नक्काशी भी थी। कारीगरने मुझे बताया कि वैसी एक बन्दूक बनाने में उसे एक महीना लगा था। उसकी कीमत उसने दौ सौ रुपये बतायी। यह कारीगरी देखकर मुझे भारतीयोंके हुनरपर गर्व हुआ और भारतीयोंके स्वदेशीके प्रति उदासीन रहनेपर अत्यन्त दुःख हुआ। जब ऐसे हुनरका हम पूरा उपयोग नहीं करते तब हम भुखमरीके सिवा और किस बातकी आशा कर सकते हैं? निजामाबादकी कारीगरीकी सारे हिन्दुस्तानको खबर होनी चाहिए। मुझ जैसे स्वदेशीके उत्कृष्ट प्रेमीतक ने इस छोटेसे गाँवके विषयमें कुछ नहीं सुना था।

हमारी गन्दगी

लेकिन जैसी निजामाबादकी कारीगरी थी वैसी ही उसकी गन्दगी भी थी। उसमें एक ही गली है। उसकी गन्दगी देखकर मुझे वहाँ जो पन्द्रह मिनट व्यतीत करने पड़े वे मुझे सजाके समान जान पड़े। गलीके मध्यमें एक नाली थी जिसमें सारी गन्दगी बह रही थी। गलीमें कूड़ा-ही-कूड़ा नजर आता था।

इसी गलीसे होकर हम निजामाबादके एक सज्जनके घर गये। वहाँ साक्षियोंकी जाँच की। बादमें लोगोंकी ओरसे भाषणकी माँग की गई। मैंने वहाँकी गन्दगी और स्वदेशीकी बात कही। उन लोगोंके बारेमें जिनकी गलियाँ गन्दी और दुकानें साफ-सुथरी हों क्या सिद्ध होता है, यह प्रश्न मेरे मनमें उठा। मैं अपना घर तो साफ करूँ पर