पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कूड़ा-करकट गली में फेंक दिया करूँ; अपने घरका शौचालय स्वच्छ रखकर गलीको गन्दा करूँ—इससे तो यही प्रगट होता है कि मुझे अपने पड़ोसीकी भावनाओंकी कोई परवाह नहीं है, उसके प्रति मेरे मनमें न तो दया है और न प्रीति। तो फिर मैं जनताके साथ एक होने का दावा कैसे कर सकता हूँ? जिनकी गलियाँ साफ नहीं भला उनका दिल साफ रह सकता है? मुझे नफीस कारीगरी आती है लेकिन अगर मेरी कारीगरीका प्रभाव मेरी गलीपर नहीं होता तो यही कहा जायेगा कि मेरे स्वार्थीपनकी कोई सीमा नहीं है। निजामाबादकी गली इतनी सँकरी और छोटी है कि उसे हर रोज पन्द्रह मिनटमें साफ किया जा सकता है। यदि इतने मेहनती लोग इतनी भी व्यवस्था नहीं कर सकते तो यह माना जायेगा कि वे अपने छोटे-छोटे मामलोंको सुलझानेके योग्य भी नहीं है, फिर बड़े मामलोंको कैसे सुलझायेंगे? स्वराज्य तो हमारी गलियोंसे शुरू होना चाहिए। इसलिए मैंने यह कहकर अपने भाषणको समाप्त किया कि मैं जब फिर निजामाबाद आऊँ तो आशा करता हूँ कि मुझे उसकी गली, उसकी दुकानें और उनमें रखा हुआ माल साफ हालतमें मिलेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-१२-१९१९
 

२१५. दुर्गादास अडवानी

दुर्गादास अडवानी उन उत्तम कार्यकर्ताओं में से हैं जिनसे मुझे आजतक मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ ह। १९१५में भारतमें लौटकर आनेके तुरन्त बाद मेरा उनके साथ प्रथम परिचय पत्र-व्यवहार[१] द्वारा हुआ था। जिस अवसरपर उनसे पत्र-व्यवहार हुआ था उसीसे मुझे उनके चरित्रका परिचय मिल गया था। सिन्ध प्रदेशमें वे बड़े ही उत्साही कार्यकर्ता रहे हैं। उन्होंने वहाँ कई वर्षतक अनवरत परिश्रम और ईमानदारीसे कार्य किया है। अभी हालमें ही उन्हें एक वर्षकी कड़ी सजा हुई है। अपील-अदालत के फैसलेपर मुझसे मत मांगा गया है। मेरी समझमें फैसलेमें कोई दम नहीं है। अदालतने 'न्यू कॉल' नामक परचेको राजद्रोहपूर्ण माननेमें भूल की है और उसने अडवानीको दोषी ठहरानेके लिए गवाहियोंके विश्लेषणमें काफी खींचतान की है। पर सम्भव है कि ऐसी राय देनेमें में स्वयं ही दुर्गादासके प्रति कुछ पक्षपात कर रहा होऊँ। जहाँतक मेरा विश्वास है में दृढ़तासे कह सकता हूँ कि वे जेलसे बचनेके लिए झूठ बोलनेवालोंमें से नहीं हैं। पर सम्भव है कि गवाहियोंसे वही अर्थ निकलता हो जो अपील-अदालतने लगाया है।

सच्चे सत्याग्रही और घनिष्ठ मित्रके नाते में इस दण्डाज्ञापर न तो दुर्गादासके लिए खेद प्रकट कर सकता हूँ और न उनके परिवारके प्रति समवेदना ही प्रकट कर सकता हूँ। दुर्गादासने खूब सोच-समझकर सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा ली थी। इस अवसरसे लाभ उठाकर

  1. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ ३५२।