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पत्र : जी० एस० अरुंडेलको

भारतके मर्मभागको स्पर्श करती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि अंग्रेजों और हमारे बीचके राजनैतिक सम्बन्ध किसी ठोस नींवपर आधारित हों। इस प्रक्रियामें मदद देनेके लिए मैं अपनी सारी शक्तिसे प्रयत्न कर रहा हूँ। मैं राजनीतिक सुधारमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि योग्य व्यक्ति उसपर ध्यान दे रहे हैं। रौलट कानूनके साथ राजनैतिक सुधारकी बात जोड़ना मेरी रायमें तो एक गतिरोध ही है। रौलट कानून द्वेषपूर्ण प्रवृत्तिके द्योतक हैं और अन्तमें अंग्रेज अधिकारी, यदि भारतीय लोकमत उनपर अच्छा असर न डाल सके तो, सुधारोंको व्यवहारमें बेकार कर डालेंगे। वे हमारा अविश्वास करते हैं और हम उनका अविश्वास करते हैं। दोनों ही एक-दूसरेको अपना स्वाभाविक शत्रु मानते हैं। इसीलिए रौलट कानून बनाये गये हैं। सिविलियन अफसरोंने हमें दबा रखनेके लिए ही ये कानून बनाये हैं। मेरे मतसे तो ये कानून भारतीय जनताके लिए नागपाशकी तरह हैं। इनके विरुद्ध लोकमत इतने अधिक स्पष्ट रूपमें प्रदर्शित किया जानेपर भी सरकार इन धिक्कारने योग्य कानूनोंसे इतने हठपूर्वक चिपकी हुई है कि मुझे तो किसी बहुत बड़े अनिष्टकी आशंका होती है। चूंकि मेरे ऐसे विचार हैं, इसलिए सुधारोंमें दिलचस्पी लेनेकी मेरी अनिच्छापर आपको आश्चर्य नहीं होगा। रौलट कानून हमारे रास्तेको रोक रहे हैं। अन्य बातोंके साथ मार्गकी इस बाधाको दूर करनेके लिए भी मेरा जीवन समर्पित है ।

इस बारे में कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। सविनय अवज्ञा आन्दोलन सदा चलता ही रहेगा। यह जीवनका एक सनातन सिद्धान्त है। जीवनके बहुतसे क्षेत्रों में जाने-अनजाने हम उसपर अमल करते हैं। ये शंकाएँ और इतनी उत्तेजना इसीलिए है कि उस सिद्धान्तका नया और विस्तृत प्रयोग किया गया। वह स्थगित इसीलिए किया गया है कि उसके सच्चे स्वरूपका दर्शन कराया जा सके और रौलट कानून रद करनेकी जिम्मेदारी सरकार और उन नेताओंपर डाली जा सके जिन्होंने (आप सहित) उसे मुल्तवी करनेकी मुझे सलाह दी है। परन्तु मुनासिब मियादमें ये कानून रद न किये गये, तो जैसे रातके बाद दिनका आना निश्चित है, वैसे ही सविनय अवज्ञा भी निश्चित है। सरकारके शस्त्रागारमें एक भी हथियार ऐसा नहीं, जो इस सनातन बलको दबा सके अथवा नष्ट कर सके। सचमुच वह समय अवश्य आयेगा, जब वह दुःखोंके विरुद्ध न्याय प्राप्त करने में सबसे कारगर और साथ ही सबसे निर्दोष उपायके रूपमें स्वीकार किया जायेगा।

आपका सुझाव है कि इस समय हम सब एक हो जायें। मेरा खयाल है कि ध्येय तो हमारा एक है ही। परन्तु देशमें दल हमेशा रहेंगे। किसी भी सुधारके लिए सबके लिए एक सामान्य कार्यक्रम नहीं ढूंढा जा सकता, क्योंकि कुछ लोग औरोंसे ज्यादा आगे जानेकी इच्छा रखनेवाले होंगे ही। मुझे ऐसी स्वस्थ विविधतामें कोई हर्ज मालूम नहीं होता। हममें से जो चीज मैं दूर करना चाहता हूँ, वह है हमारा एक-दूसरेपर अविश्वास और एक-दूसरेपर गलत इरादोंका आरोपण। हमें जिस पापने घेर रखा है, वह हमारा मतभेद नहीं बल्कि हमारा ओछापन है। हम शब्दोंपर झगड़ा करते हैं। कई बार तो हम परछाईके लिए लड़ते हैं और मूल वस्तुको खो बैठते हैं; जैसा कि श्री गोखले कहा करते थे, हमारे देशमें राजनीतिका उपयोग या तो अपनेको आगे बढ़ानेकी सीढ़ीके तौरपर