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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया जाता है और नहीं तो वह अवकाशके समय हमारे विनोदका साधन मात्र होती है ।

मैं तो आपसे और अखबारोंके दूसरे सभी संपादकोंसे प्रार्थना करता हूँ कि हमारी राजनीतिमें उदारता, गाम्भीर्य और निस्वार्थभाव लानेका आग्रह कीजिये। फिर हमारे मतभेद आज जितने खटकते हैं, उतने नहीं खटकेंगे। असलमें खटकनेवाली वस्तु हमारे मतभेद नहीं बल्कि उनके पीछे छिपा हमारा ओछापन है और जो बेशक बड़ा भद्दा है ।

पंजाब में दी गई सजाएँ रौलट-कानूनके विरुद्ध चलनेवाले आन्दोलनके साथ अटूट रूपसे गुँथी हुई हैं। इसलिए जितना जरूरी इस कानूनको रद कराना है उतना ही जरूरी इन सजाओंमें तबदीली कराना है । में आपसे सहमत हूँ कि प्रेस ऐक्टमें बुनियादी तबदीलियाँ करने की जरूरत है। असलमें तो सरकार अपने स्वेच्छाचारी शासन कृत्योंसे राजद्रोहका पोषण कर रही है। यह जानकर मुझे अफसोस हुआ कि 'हिन्दू' और स्वदेश मित्रम्' के विरुद्ध की गई कार्रवाइयों (जो मेरी रायमें बिलकुल अनावश्यक थीं) की कुल जिम्मेदारी लॉर्ड विलिंग्डनने अपने ऊपर ले ली है। इन कार्रवाइयोंसे इन दोनों पत्रोंकी प्रतिष्ठा अथवा लोकप्रियतामें कोई कमी नहीं हुई, उलटी वृद्धि ही हुई है। कोई भी पत्रकार उचित आलोचनाकी मर्यादाका उल्लंघन कर दे और राजद्रोहा- त्मक लेख लिखे तो उसे सजा देनेके लिए देशमें काफी अदालतें हैं। आप अधिकारोंके घोषणापत्रकी जो बात कर रहे हैं, वह मुझे पसन्द नहीं आया। यदि हम अंग्रेज कर्म- चारियोंका मानस बदल पायें तो हम अधिकारोंके घोषणापत्रके मामलेमें बहुत आगे बढ़ जायेंगे। उन्हें और हमें परस्पर सम्माननीय मित्र बनना चाहिए या फिर सम्माननीय शत्रु। परन्तु जबतक हम बहादुर, निर्भय और स्वतंत्र नहीं बनेंगे तबतक दोनोंमें से कुछ नहीं हो सकेगा। लॉर्ड विलिंग्डनने एक बार कहा था कि जब तुम्हारे मनमें 'न' हो तब परिणामोंसे डरे बिना 'न' कहो। मुझे लगता है कि उनकी यह सलाह याद रखने लायक है । सविनय अवज्ञाका शुद्ध रूप तो यही है। मंत्री और प्रेमका यही मार्ग है। परम्परासे चला आ रहा दूसरा मार्ग सम्मानपूर्ण खुली हिंसा करना है - जिस हद तक वह सम्मानपूर्ण हो सकती है। मेरा खयाल तो यह है कि हिंसाका मार्ग मनुष्यके लिए सम्मानपूर्ण नहीं है। इसलिए मैंने पहला, अहिंसाका रास्ता हिन्दुस्तानके आगे रखा है। जब उसका पूर्ण रूपमें आचरण किया जाता है तब वह सत्याग्रह कहलाता है। यही मार्ग मनुष्यकी शोभाके अनुरूप है।

हृदयसे आपका,
 
मो० क० गांधी
 

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ६-८-१९१९

१. सरकारने मद्रासके इन दोनों पत्रोंसे दो-दो हजारको जमानते माँग ली थीं तथा पंजाब और ब्रह्मामें हिन्दू के प्रवेशपर प्रतिबन्ध लगा दिया था !

२. १८६६ - १९४१; बम्बईके गवर्नर; भारतके वाइसराय, १९३१-६