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पत्र : एस्थर फैरिंगको

आ गये हैं। उन्होंने अपने लिए अलग घर ले लिया है और उसमें सपरिवार रह रहे हैं। वे कांग्रेसके अध्यक्ष नियुक्त किये जा चुके हैं, इसलिए अपना भाषण तैयार करनेमें व्यस्त हैं।

शेखूपुरा

लाहौरमें छत्तीस घंटे रुककर हम शेखूपुरा गये। यह चिट्ठी में शेखूपुरासे लिख रहा हूँ। शेखूपुरा एक छोटा-सा गाँव है और लाहौरसे लगभग पच्चीस मील दूर है। यहाँ भी साँगला हिल जैसी स्थिति है। लोग निर्दोष हैं। गुजरांवाला आदि जिन गाँवोंके नाम मैंने गिनाये हैं वे सब एक जिलेके हैं, इसलिए एक ही अधिकारीकी सत्ताके अधीन हैं, और ऐसा लगता है कि वह अधिकारी न्याय-अन्याय दोनोंमें कोई भेद नहीं करता। इसलिए शेखूपुरामें भी अकालगढ़ आदि गाँवों जैसी दशा है। जैसा अत्याचार उन गाँवोंमें हुआ है वैसा ही यहाँ भी देखने में आ रहा है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-१२-१९१
 

२१८. पत्र : एस्थर फैरिंगको

लाहौर
[दिसम्बर ७] १९१९

रानी बिटिया,

मुझे तुम्हारे दो पत्र मिले हैं। जिनमें वह विस्तृत पत्र भी है। तुमने वह पत्र भेजकर अच्छा किया।

जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ तुम आश्रममें अपनी ईसाइयत खोने नहीं वरन् उसे पुष्ट और पूर्ण करने आई हो।

यदि प्रार्थना सभाओं में तुम ईश्वरकी उपस्थिति महसूस नहीं करतीं तो यह याद रखो कि राम और कृष्ण उसीके नाम हैं जो तुम्हारे लिए यीशु है।

निश्चय ही तुम्हें इन प्रार्थना सभाओं में शरीक नहीं होना चाहिए। तुम्हें अपने निजी कक्षमें जाकर प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना सभाओंका यह प्रयोजन नहीं कि किसीको एक विशेष स्थितिमें जबरदस्ती रखा जाये। ये तो उन स्त्री-पुरुषोंके लिए हैं जो स्वतन्त्र हैं। बच्चोंको जरूर शामिल होना चाहिए। जो केवल आलस्यवश नहीं आते उन्हें अवश्य शरीक होना चाहिए। तुम्हारी अनुपस्थिति के बारेमें किसीको भी गलतफहमी नहीं हो सकती। इसलिए तुम तो वही करो जो तुम्हें सबसे अधिक शान्ति देता हो। यदि आश्रम में रहकर तुम्हें दिन-प्रतिदिन ईश्वरका स्पष्टतर अनुभव नहीं होता तो फिर आश्रम ही क्या हुआ। यदि प्रति रविवार या किन्हीं अन्य दिनोंमें तुम गिरजाघर जाना चाहो तो अवश्य जाओ।