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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मुझे बहुत ही खुशी है कि तुमने मुझे इतना लम्बा और सुन्दर पत्र लिखा जिससे मैं तुम्हारे दिलकी गहराईमें और अधिक प्रवेश कर सका। तुम्हारा आना मेरे लिए हर्षकी बात है। अपने अनुभवके बाद यदि तुम्हें ऐसा लगे कि आश्रममें रहनेसे शान्ति, स्वास्थ्य और वास्तविक आनन्द प्राप्त होता है, और यदि अन्य ईसाई लोग यह जान सकें कि ईश्वर और ईसाइयत ऐसी संस्थाओंमें भी पाये जा सकते हैं जो अपनेको ईसाई संस्थाएँ नहीं कहतीं तो मुझे और भी अधिक खुशी होगी। बिल्लोरी काँचपर परावर्तित किरण बहुरंगी दिखाई पड़ती है ठीक उसी प्रकार सत्य भी कुछ समयके लिए भले ही विविधरूप जान पड़े परन्तु वास्तवमें सभी धर्मोमें उसका एक ही स्वरूप प्रतिष्ठित है।

तुम्हारी तरह मैं भी महसूस करता हूँ कि तुम्हें इतनी जल्दी मद्रास जानेकी जरूरत नहीं है, भले ही कुमारी पीटर्सनसे मिलनेके लिए ही क्यों न जाना हो। क्या वे आश्रम नहीं आयेंगीं? उन्हें आना चाहिए। वे आयें और इस नये स्थानमें आश्रमको देखें और जानें कि कुछ प्रगति हुई है या नहीं। उन्हें मेरा स्नेह देना।

मुझे पूर्ण आशा है कि अब तुम पूरी तरह स्वस्थ हो गई होगी। तुम्हें अपने शरीरसे खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। तुम वह सब आसानीसे नहीं कर सकतीं जो यहाँ जन्मे लोग कर सकते हैं। इसलिए तुम्हारे शरीरको जिन सुविधाओंकी जरूरत है उनका तुम्हें अवश्य आग्रह रखना चाहिए।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
 

२१९. पत्र : मगनलाल गांधीको

चुड़खाना
रविवार [दिसम्बर ७, १९१९][१]

{left|चि॰ मगनलाल,}} तुम्हारा पत्र मुझे यात्राके दौरान मिला। में परसों मंगलवारको लाहौर वापस पहुँच जाऊँगा। हरिलालका तार आया है कि वह मुझसे मिलने आ रहा है।

बा के विषयमें तुमने जो लिखा है वस्तुतः बात वैसी ही है, मुझे इसी बातका दुःख है। जबतक वह तुम सबको हरिलालके समान नहीं मानने लगती तबतक उसका आश्रममें रहना व्यर्थ ही हुआ। लेकिन यह स्थिति हमारे लिये अपरिहार्य है इसलिए इसे भोगने तथा बा पर तरस खानेके सिवा और कोई चारा नहीं है।

  1. यह पत्र १० दिसम्बरको प्रापकको मिला था। उसीके आधारपर यह तारीख निश्चित की गई है।