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२२६. पत्र : एडमंड कैंडलरको

२, मुजंग रोड
लाहौर
दिसम्बर १५, १९१९

प्रिय श्री कैंडलर,

आपके १२ तारीख के पत्रके[१] लिए धन्यवाद, उसमें निहित मित्रताकी भावनाकी मैं कद्र करता हूँ और आपका यह आश्वासन पूरी तरह स्वीकार करता हूँ कि मुझे चोट पहुँचानेका आपका कतई इरादा नहीं था।

उक्त लेखकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया गया और मुझे लगा भी कि सचमुच ही उसकी शब्दावली बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं थी। मुझे यह भी लगा कि मेरा जैसा विकृत खाका खींचा गया है उससे हिन्दू और मुसलमान दोनोंको बुरा लगेगा। किन्तु आपके इस पत्र के बाद अब विरोधी आलोचनाके लिए कोई कारण नहीं रह जाती। निश्चय ही आधुनिक पत्रकारिता इस बातको अनुचित नहीं मानती कि जिन लोगोंकी नीतिकी आलोचना की जाये आलोचक उनके दुर्बल माने जानेवाले पहलुओंपर चोट करे और मैं मान लेता हूँ कि इससे अधिक कुछ करनेका आपका इरादा नहीं था। आपने जो प्रश्न उठाये हैं मैं उनके लिए भी आपको धन्यवाद देता हूँ। इन प्रश्नोंसे मुझे अपनी स्थिति, जिसे मैं अपने लेखों और भाषणोंसे जितना स्पष्ट कर सका हूँ, उसकी अपेक्षा कहीं अधिक विस्तारसे समझानेका मौका मिला है।

आपके पहले प्रश्नका उत्तर यह है कि में यह नहीं चाहता, न मैंने कभी चाहा है कि सरकारको उलझन में डाल दूँ और मैंने किसी भी उद्देश्य के लिए कभी भी कोई ब्रिटिश विरोधी आन्दोलन नहीं भड़काया। मेरा निजी धर्म इन दोनोंमें से एकपर भी चलनेकी इजाजत नहीं देता। किन्तु कभी-कभी ऐसा होता है कि मनुष्यका धर्माचरण भी उन लोगोंको उलझनमें डाल देता है जो फिलहाल उसे ठीक नहीं समझते और इस अर्थ में मैं स्वीकार करता हूँ कि किसी भी अन्य सुधारककी तरह मेरे आचरणसे भी कुछ लोगोंको उलझन हुई होगी। किन्तु पक्षपातका आरोप मुझपर नहीं लगाया जा सकता। सत्यकी अनवरत साधना और तदनुरूप आचरणसे मेरे सबसे प्रिय कुटुम्बियोंको यहाँतक कि मेरी स्त्री और मेरे बच्चोंको भी उलझन हुई है, किन्तु जिस प्रकार मैं अपने प्रियजनोंका विरोधी नहीं था वैसे ही ब्रिटिश विरोधी भी नहीं हूँ। मुझे सैकड़ों अंग्रेज स्त्री-पुरुषोंकी मित्रता या उनकी शुभैषिताका गौरव प्राप्त है। यदि में अपने मनमें ब्रिटिश विरोधी भावनाएँ रखूँ तो में उनकी मित्रता और सदिच्छाओंका योग्य पात्र नहीं होऊँगा। ब्रिटिश सरकारके किन्हीं कार्योंका जो में दृढ़तासे विरोध करता हूँ उसे अमैत्री मान लेना भूल होगी, भारतमें मित्रता और वफादारीके सम्बन्धमें ऐसी अजीब

  1. देखिए परिशिष्ट ९।