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पत्र : एडमंड कैंडलरको

धारणाएँ व्याप्त हैं कि सरकारके किसी कार्य से उत्पन्न अप्रसन्नताकी किसी भी जोरदार अभिव्यक्तिको गैर-वफादारीका नाम दे दिया जाता है। आप मुझसे सहमत होंगे कि ऐसे वातावरण में सच्ची वफादारी जिसके कारण अप्रिय सत्य कहनेका भी साहस किया जा सकता है एक दुर्लभ गुण ही होगा।

अब आपका दूसरा प्रश्न लेता हूँ मैं स्वीकार करता हूँ कि तुर्कोंकी माँगके प्रति मेरी सम्मानकी भावना, मेरे मनमें अपने देशवासियों—मुसलमानों के प्रति जो सम्मान की भावना है उसीका फल है। यदि ऐसे हर सवालपर जिसका उनसे गहरा सम्बन्ध है मेरे मनमें उनके लिए सहानुभूति नहीं होगी—बशर्ते़ कि उनका उद्देश्य न्यायसंगत हो—तो उन्हें अपना देशवासी कहनेका मेरा अधिकार जाता रहेगा। मेरे देशकी शान्ति खतरे में पड़ सकती है, किन्तु मुस्लिम भावनाको ठीक रास्तेपर चलानेके मेरे प्रयत्नसे नहीं। हाँ, वह ब्रिटिश मन्त्रियोंके विवेकहीन और मूर्खतापूर्ण कार्यके कारण जरूर खतरेमें पड़ेगी। मैं यह दावा करनेका साहस करता हूँ कि भारतीय मुसलमानोंको यह राय देकर कि वे अपनी भावनाएँ संयमपूर्वक प्रदर्शित करें और हिन्दुओंको यह राय देकर कि वे उनका साथ दें, मैंने सेवाका कार्य ही किया है।

ग्लैडस्टन, मॉर्ले और ब्राइस—जिनके लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है—की रायके प्रतिकूल चलनेकी बुद्धिमानीपर आपकी शंका ठीक है। किन्तु प्रश्नकी आवश्यकता आपके टर्कीके पक्षमें मुसलमानोंकी माँगको न समझनेके कारण है। मैं आपको उनके दृष्टिकोणका अध्ययन करनेके लिए आमन्त्रित करता हूँ। वे ऐसी कोई चीज नहीं माँगते जो दूसरे देशोंको नहीं दी गई है या जिसे उन्हें देने का वचन स्वयं ब्रिटेनके मन्त्रियोंने नहीं दिया है। उनकी माँगको, जैसा आप जानते होंगे, भूतपूर्व गवर्नरोंके बहुमत और दूसरे सम्भ्रांत आंग्ल-भारतीयोंका समर्थन प्राप्त है। खिलाफतके प्रश्न यानी टर्कीकी अखण्डता और इस्लामी तीर्थ-स्थानोंपर टर्कीके नियन्त्रणसे, शासित जातियोंके प्रति टर्कीके व्यवहार या दुर्व्यवहारका क्या सम्बन्ध? क्या शासित जातियोंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए टर्कीसे कुस्तुंतुनिया छीन ही लिया जाना चाहिए? यदि आप एक पत्रकार और एक अंग्रेजके नाते भारतकी शान्तिको सुरक्षित रखना चाहते हों और चाहते हों कि भारत युद्धकी समाप्ति और शान्तिका उत्सव सच्चे दिलसे मनाये तो आपको चाहिए कि आप भारतवासी अंग्रेजोंसे कहें कि वे मुसलमानोंका समर्थन करें और ब्रिटिश मन्त्रियोंको भारतकी सच्ची भावना जता दें ताकि समय रहते न्याय किया जा सके।

चूंकि आपने मुझे अपना पत्र छापनेकी अनुमति दे दी है अतः में आपका पत्र और यह उत्तर छपनेके लिए भेज रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीस]
ट्रिब्यून, १८-१२-१९१९