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२२७. पंजाबकी चिट्ठी—७

[दिसम्बर १५, १९१९ के लगभग][१]

चुड़खाना

मैंने अपना अन्तिम पत्र शेखूपुरासे लिखा था। शेखूपुरा बादशाह जहाँगीर द्वारा बसाया हुआ नगर है। इसमें एक किला और एक विशाल मन्दिर आदि हैं। वे देखने लायक माने जाते हैं। मुझे तो उन्हें देखने जानेका समय नहीं मिला। कहते हैं कि अमृतसरका स्वर्णमंदिर इसीकी नकल है और इसकी अपेक्षा छोटा है।

शेखूपुरासे हम चुड़खाना गये। यह गाँव स्टेशनसे कुछ दूर है। लेकिन हमें काम तो चुड़खानाकी 'मंडी' में था। बाजारको यहाँ मंडी कहते हैं। लेकिन गुजराती बाजार और पंजाबकी मंडीमें भेद है। यहाँ मंडीका अर्थ है एक बड़ा चौक और उसके आस-पासके घर। चौकमें अनेक तरहका माल आता है और आसपास दुकानें होती हैं। चुड़खानाकी मंडी अपेक्षाकृत बड़ी है और वहाँ हजारोंका माल रहता है। चुड़खाना से कुछ बड़ी नहरें निकलती हैं। इसलिए उसके आसपास कपास आदिकी बहुत अच्छी फसल होती है। हमने देखा कि लोगोंने चुड़खानाके स्टेशनमें आग लगायी थी तथा दूसरी तरहसे भी नुकसान पहुँचाया था। अन्य स्थानोंकी भाँति यहाँ भी मंडीके समीप एक भारी सभाका आयोजन किया गया था। चुड़खाना स्टेशनपर बहुतसे व्यक्ति जमा हो गये थे और हमें सब लोगोंके साथ चलकर उस स्थानपर पहुँचना था जहाँ हमें ठहराया गया था। लेकिन सब लोग मेरी ओर इस तरह धँसते चले आ रहे थे कि चलना मुश्किल हो गया। मेरा बचाव करनेमें तो आसपास के व्यक्तियोंने कोई त्रुटि न रखी, फिर भी मेरे नंगे पाँव कुचले तो गये हो। प्रत्येक व्यक्तिको 'दर्शनों' का अतिशय लोभ था। गाँवोंके आसपास धूल तो होती ही है, इससे मुँह, नाक और कानोंमें कुछ कम धूल नहीं गई। शोर भी बहुत ज्यादा हो रहा था। इस कारण सभामें मैंने लोगोंसे अनुशासनकी कमीके सम्बन्धमें काफी बातकी। [मैंने कहा] लोग जिन्हें बड़ा मानते हैं उनका वे आदर-सत्कार करें यह तो ठीक है, लेकिन यह भावना यदि शुद्ध स्वरूप धारण न करे तो इससे देशका नुकसान ही होता है। और फिर जहाँ पहलेसे कुछ बन्दोबस्त नहीं होता, जहाँ लोगोंको पहलेसे ही तालीम नहीं दी गई होती वहाँ अधिक तकलीफ हो जाती है। औरोंको मार्ग देते हुए चलें, जिन्हें मान देते हों उनके पीछे चलें, उनसे थोड़ी दूर चलें, व्यर्थका शोर न करें, मुखियाकी बात सुनें—ये सब ऐसी बातें हैं जो आसानीसे सीखी जा सकती हैं।

  1. पत्रमें गांधीजीकी दिल्ली यात्राका उल्लेख है जो ११ दिसम्बर को हुई थी। सम्भवतः उन्होंने यह पत्र आनेवाले सोमवारको लिखा था जो इस तारीखको पड़ा था।