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पंजाबकी चिट्ठी—७

 

सभामें गड़बड़

सभा शुरू हुई उस समय अव्यवस्थाकी हद न थी। सब शोर मचा रहे थे। यह स्थिति मुझे असह्य लगी। मैंने तुरन्त ही लोगोंको विनयपूर्वक बताया कि यदि वे शान्तिपूर्वक बैठ नहीं जायेंगे तो जिसे सुननेके लिए वे इतना शोर कर रहे हैं, उसे सुन नहीं पायेंगे। लोग बैठ गये और बिलकुल शान्त हो गये। स्टेशनके आगे प्रेमके वशीभूत हो लोगोंने जो भूलें की थीं उन्हें बतानेके बाद जब सभा बरखास्त हुई उस समय लोग वहाँसे शान्तिपूर्वक विदा हुए; उन्होंने मेरे आसपास अथवा आगे भीड़ नहीं की। लोगोंमें समझ, विचारशक्ति आदि गुण कम नहीं हैं, लेकिन उन्हें राह दिखाने वालेकी ही जरूरत है। इस सभामें मैंने बताया कि मकान आदि जलानेमें जो भूलें हुई हैं, वे भी तालीमको कमीके कारण ही हुई हैं। अनेक लोगोंके मनमें मकान आदि जलाने का विचारतक न था। फिर भी जब किसी एक व्यक्तिने मकान जलाना आरम्भ किया तो दूसरोंने भी उसका अनुकरण किया। यदि लोगोंको विचारपूर्वक कदम उठानेकी, उत्तरदायी व्यक्तिकी बात सुननेकी शिक्षा मिली होती तो जो घटनाएँ घटीं वे कभी न हुई होतीं

दिल्लीमें एक दृश्य

मुझे ११ दिसम्बरको थोड़े समयके लिए दिल्ली हो आनेका अवसर आया था। वहाँ मुझे दक्षिण आफ्रिकाके कामके सिलसिले में जाना था, लेकिन मैंने वहाँके प्रसिद्ध बैरिस्टर श्रीराम द्वारा स्थापित सेवा मंडलके उत्सवकी अध्यक्षता करना भी स्वीकार कर लिया। लोगोंने सुना कि मैं अध्यक्ष बननेवाला हूँ, इस कारण बिना निमन्त्रणके हजारों व्यक्ति आ पहुँचे। उन्होंने ठेलमठेल की और वे दरवाजेसे जबरदस्ती भीतर घुस आये। ऐसे अवसरपर वे लोग यह बात सहन न कर सके कि इसमें केवल टिकटवाले लोग ही जा सकते हैं। सब लज्जित हुए, मुझे भी लज्जा आई। मुझे देखने और मान प्रदान करनेके लिए आनेवाले लोगोंसे इतनी मर्यादाका भी पालन नहीं हो सका, यह कितनी अनुचित बात है?

नेतागण और जनता

लेकिन यह कोई उद्धतता न थी। जिसके 'दर्शन' करने हों उसकी ओर जाते हुए हमें धकेलनेकी जो आदत पड़ गई है वह अनुचित है—ऐसी शिक्षा ही हमें कहाँ मिलती है? तीर्थक्षेत्रों में तो नहीं मिलती। "जो जल्दी आये सो पहले पाये", "जिसकी लाठी उसकी भैंस" इन्हीं सूत्रोंपर मन्दिर अथवा हवेलीमें भी अमल किया जाता है। शिक्षित अथवा बड़े लोगोंने इन स्थानोंका त्याग कर रखा है अथवा जब हम इन स्थानोंमें जाते हैं तब उसके लिए अनुकूल प्रबन्ध कर लेते हैं। बुराइयाँ जैसी-की-तैसी चलती रहती हैं। सेवा मंडलने प्लेगके समय मदद की, मुर्दे जलाये, दवाएँ बाँटीं। वैसा करनेकी आवश्यकता थी। हिन्दुस्तान में स्थान-स्थानपर यदि इतना भी न किया गया होता तो हम कबके मिट गये होते। लेकिन उतना पर्याप्त नहीं है। यह तो अल्प सेवा है। सेवा मंडल [की सभा] में पदक और प्रमाणपत्र भेंट किये जानेवाले थे।