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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे सब अंग्रेजीमें थे! अब मैं लोगोंकी धक्का-मुक्कीकी बातको समझ सका। नेता और आम जनतामें निकटका सम्बन्ध ही नहीं है। लोगोंको बिलकुल आवश्यक तालीम देनेकी भी हमें गरज नहीं है, हमने उसके साधन भी प्राप्त नहीं किये हैं। जिन्होंने धक्का-मुक्की की थी वे अंग्रेजी नहीं जानते थे। उन्हें हमने दवा तो दी, लेकिन जब वे स्वस्थ हो गये तब उन्हें प्रजातन्त्रमें कैसे भाग लेना चाहिये—यह बात हमें बतानी न आयी। [हमारा ऐसा खयाल है कि] उसके लिए वे अंग्रेजी सीखें तभी तैयार हो सकते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि हम भी वैसे ही तैयार हुए हैं। इसलिए सामान्य वर्गने तो अपनी सामान्य आदतके अनुसार धक्का-मुक्की की। यह बात मैंने सभाके सम्मुख रखी। सभा समझी, लज्जित हुई। देशमें जाग्रति आई है। सामान्य जन भी सार्वजनिक कार्यों में भाग लेना चाहते हैं, बलिदान करनेके लिए तैयार हैं, लेकिन दिशा नहीं जानते और जबतक लोगोंकी भाषामें हम उन्हें नहीं समझायेंगे तबतक लोग क्या समझें? कैसे समझें?

लायलपुर

अब मैं पुनः चुड़खानापर आता हूँ। चुड़खानासे हम लायलपुर गये। लायलपुर अलग जिला है। जिन पाँच जिलोंमें मार्शल लॉ लगाया गया था उनमें से यह एक है। जिलेका नाम लायलपुर शहरके नामपर पड़ा है। लायलपुर बिलकुल नया शहर है। उसका नाम सर चार्ल्स लायलके[१] नामपर रखा गया है। यह शहर १८९६ में बसाया गया था। शहरके मध्य में एक गोल चबूतरा है जिसपर एक बड़ा घंटाघर है। यहाँसे आठ रास्ते निकलते हैं। इन रास्तोंपर दुकानें तथा रहनेके मकान हैं। ये सब नये बने हैं यह हम देख सकते हैं। मुख्य नहर कॉलोनीके नामसे विख्यात इलाका यही है। अच्छेसे अच्छे गेहूँ तथा कपासकी पैदावार इस नहरवाले प्रदेशमें ही होती है और यहाँके लोग काफी खुशहाल हैं। लायलपुरकी आबादी ३०,००० की होगी। यहाँ मार्शल लॉ के दिनों में कहर बरस रहा था। लोगोंने कुछ भी नुकसान नहीं किया था, फिर भी बड़े-बड़े लोगों को पकड़कर व्यर्थ ही परेशान किया गया था। यहाँ एक भारी सभा भी आयोजित की गई थी। स्त्रियोंकी अलग सभा की गई थी और पुरुषोंकी सभा शहरसे दूर होनेपर भी उसमें बहुत स्त्रियाँ आई थीं। लायलपुरमें हुई सभाका बन्दोबस्त अपेक्षाकृत अच्छा था। जहाँ-जहाँ लोगोंको थोड़ी-बहुत भी शिक्षा मिली है वहाँ-वहाँ उसका प्रभाव तुरन्त दिखाई पड़ता है। मुझे ऐसी खबर दी गई है कि लायलपुरमें चरखेका काम अच्छी तरह चल सकता है।

दस तकुओंवाला चरखा

लुधियानेसे एक कारीगर मुझे दस तकुवोंवाला चरखा दे गया है। युक्ति बहुत ही अच्छी, सस्ती और सहल है। लेकिन वह कारीगर दसों तकुओंपर एक ही समयमें

  1. सर चार्ल्स जेम्स लायल (१८४५-१९२०); अंग्रेज प्राच्य-विद्या-विशारद; बंगाल सिविल सर्विसके अधिकारी; मध्यप्रदेशके चीफ कमिश्नर (१८९५-१८९८); भारत कार्यालयमें न्याय और लोक विभागक मंत्री (१८९८-१९१०)।