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पंजाबकी चिट्ठी—८


यहाँसे हम जलियाँवाला बाग देखने गये। इसका नाम बाग रखा गया है, यह गलत है। 'जलिया' शब्द उपनाम है—उसके मूल मालिकका। यह 'बाग' फिलहाल चालीस हिस्सेदारोंकी मिल्कियत है। यह बाग नहीं बल्कि एक घूरा है। इसके चारों ओर घरोंका पिछला भाग पड़ता है, और पीछेकी खिड़कीसे लोग अपने घरोंका कूड़ा इसमें फेंकते हैं। इसमें तीन पेड़ और एक छोटीसी कब्र है। यह बिलकुल मैदान है और एक सँकरी गली में से इसमें प्रवेश किया जा सकता है। इस गलीमें से जनरल डायरने प्रवेश किया। इसीलिए १३ तारीखको जो लोग इस बाग में एकत्रित हुए थे वे फँस गये। इस 'बाग' में से तीन-चार जगहोंसे निकला जा सकता है लेकिन यह दीवार कूदकर ही सम्भव हो सकता है, इस तरह कूदकर ही हजारों व्यक्ति उस दिन अपनी जान बचा सके थे।

इस बाग में निरपराधी व्यक्तियोंके लहूकी नदी बही, इससे अब यह स्थान पवित्र बन गया है। इस स्थानको राष्ट्रके लिए प्राप्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं, यदि उसमें असफलता मिली तो यह हमारे लिए शर्मकी बात होगी।

कांग्रेसकी तैयारी

जब यह पत्र प्रकाशित होगा उससे पूर्व कांग्रेसकी पहली बैठक तो हो चुकी होगी। सब तैयारियाँ हो रही हैं। हजारों व्यक्तियोंके आनेकी आशा है। पंडित मोती लालजी अपना व्याख्यान तैयार कर रहे हैं। स्वामी श्री श्रद्धानन्दजीने अपना व्याख्यान तैयार कर लिया है, वह हिन्दी में है।

विविध

श्री जयकर यहाँ आये हुए हैं और उन्हें पंडित मालवीयजीकी एवज में कमिश्नर[१] नियुक्त किया गया है।

हंटर समितिका यहाँका काम लगभग पूरा हो गया है। अहमदाबादमें जनवरीकी ५ तारीखको उसकी बैठक आरम्भ होगी।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-१२-१९१९
  1. कांग्रेस द्वारा नियुक्त जाँच समितिका सदस्य।