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२३३. भाषण : अखिल भारतीय मानव-दया सम्मेलनमें

अमृतसर
दिसम्बर २८, १९१९

सभा विसर्जित करनेसे पहले महात्मा गांधीने कहा कि इतने शोरगुल और गड़बड़ी की स्थिति में सभाका कार्य चलाना असंभव है और सभाको ऐसी स्थितिमें जारी रखना क्रूरता होगी। उन्होंने कहा कि यह बात मेरे लिए सबसे अधिक दुर्भाग्यकी है क्योंकि इस समय सभाकी जो हालत है उसे देखते हुए में भाषण नहीं दे सकता। उन्होंने प्रार्थनाकी कि यदि लोगों के दिलोंमें मेरे प्रति कुछ भी सम्मान हो तो वे शाकाहारी बनें और किसी भी प्राणीकी हत्या न करें। मुझे बताया गया है कि पंजाबके लोग मांसाहारी हैं। वह महान् दिन होगा जब पंजाबी भी शाकाहारका महत्त्व समझ लेंगे। उन्होंने विस्तारसे अहिंसाकी भी व्याख्या की और दुधारू और जिन्होंने दूध देना बन्द कर दिया है ऐसे पशुओं को जो कि भारतकी वास्तविक सम्पत्ति हैं, सुरक्षित रखनेका महत्त्व बताया। इसके बाद उन्होंने सभा समाप्त होनेकी घोषणा की।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, ३१-१२-१९१९
 

२३४. भाषण : अमृतसर कांग्रेसमें[१]

दिसम्बर २९, १९१९

तालियोंकी गड़गड़ाहटके बीच महात्मा गांधी उठे और दूसरा प्रस्ताव पेश करते हुए उन्होंने कहा कि जो प्रस्ताव[२] उन्हें सौंपा गया है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। सभी भारतीय इस बारेमें एक मत हैं कि भारत उत्तरदायी सरकारका अधिकारी है। यदि ऐसा है तो हमें अपने उन भाइयों और बहनोंकी सहायता करनी चाहिए जो इस समय दक्षिणी अफ्रिकामें यातनाके शिकार हैं। इस साल पंजाबमें हमारे भाइयोंपर जो अत्याचार किये गये वे हृदयको बींधनेवाले हैं। भारतमें एक भी ऐसा आदमी नहीं है जो उनके दुःखसे दुःखी न हो, किन्तु दक्षिणी और पूर्वी आफ्रिकामें परिस्थितियाँ उससे

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसका यह अधिवेशन २७ दिसम्बर, १९१९ से १ जनवरी, १९२० तक अमृतसर में हुआ था। गांधीजीने अस्वस्थताके कारण बैठे-बैठे अपना भाषण पहले हिन्दीमें दिया था। भाषणको हिन्दी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है; अतः उसका अनुवाद अंग्रेजीसे किया गया है।
  2. दक्षिण आफ्रिका भारतीय प्रवासियोंसे सम्बन्धित यह प्रस्ताव और इसका दूसरा भाग पूर्वी आफ्रिकाके भारतीयोंकी दशाके बारेमें था।