पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कातती हैं और तदनुसार दो-चार अथवा कुछ अधिक पैसे भी रोजाना कमा लेती हैं। ये स्त्रियाँ इस कार्यको हाथमें लेनेसे पहले कहीं भी काम नहीं करती थीं। गंगाबेन आदि यह काम प्रभु-प्रीत्यर्थ कर रही हैं।

अभी एक करघा भी लगाया गया है। मैंने देखा कि इस संस्थाको जगहकी बड़ी तंगी है। राज्य से मेरी माँग यह है : [ वह ] स्टेशनके पास एक अथवा दो एकड़ जमीन दे दे और उस जमीनपर तुरन्त रहने तथा काम करने लायक मकान बनवा दे। उसका भाड़ा देनेके लिये मैं तैयार हूँ। अगर [ आप ] इतना करा दें तो उपर्युक्त कार्य अधिक सुचारु ढंग से चल सकेगा। मेरी इच्छा तो यह है कि यदि महाराजा साहबको यह प्रवृत्ति पसन्द हो तो वे अधिकारियोंको भी [ इस कार्यमें] मदद करनेकी सलाह दें। मुझे प्रोत्साहन मिलेगा तो मुझे उम्मीद है कि बीजापुर रियासत में थोड़े समय में ही बहुत ज्यादा कपड़ा तैयार हो सकेगा और किसान तथा इतर वर्गको अपनी आय में बढ़ोतरी करनेका एक साधन मिल जायेगा।

यह तो हुई एक बात।

रेलगाड़ी में मैंने देखा कि [ उसमें ] व्यक्तियोंको बकरियोंके समान ठूंसा जाता है। डिब्बे बहुत ही कम हैं तथा एक ही गाड़ी आती और जाती है। यह पर्याप्त नहीं है। मेरी आकांक्षा है, यदि इस संम्बन्धमें कुछ किया जा सकता हो तो आप अवश्य करें। पत्रके लिए क्षमा चाहता हूँ।

आपका,

श्री मनुभाई नंदशंकर
दीवान
बड़ौदा

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६७९६) की फोटो - नकलसे।

७. पत्र : ए० एच० वेस्टको

आश्रम

साबरमती

अगस्त ४, [१९१९]

प्रिय वेस्ट,[१]

बम्बईसे लौटनेपर तुम्हारा पत्र अभी-अभी पढ़ा। चूंकि तुम मेरे ही हाथका लिखा चाहते हो इसलिए मैं तत्काल लिखे देता हूँ, ताकि कहीं ऐसा न हो कि काममें फँसे रहनेके कारण फिर लिख ही न पाऊँ।

तुम्हारी सभी उलझनों और चिन्ताओंके प्रति मेरी पूर्ण सहानुभूति है। तुम्हारी माताके देहान्तका समाचार पाकर दुःख हुआ।

  1. अल्बर्ट हेनरी वेस्ट ; इन्टरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस, फीनिक्सके प्रबन्धक। दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके घनिष्ठ मित्र और साथी। देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३५४।