भी बुरी हैं और तुरन्त ध्यान देनेकी आवश्यकता है। महात्मा गांधीने बताया कि किस प्रकार गिरमिटिया प्रथाका आरम्भ भारत सरकारसे भारतीय श्रमिकोंकी माँगको जानेपर नेटालके गोरोंकी प्रार्थनासे हुआ। उन्होंने कहा कि भारतकी जेलोंमें कैदी जैसा जीवन बिताते हैं, यह प्रथा उससे भी कहीं ज्यादा बुरी है। सर विलियम हंटरने उसे दास प्रथा कहा है। हमारे भारतीय भाई इस प्रथाके अन्तर्गत दक्षिण आफ्रिका गये थे।[१] व्यापार के क्षेत्र में भारतीयोंकी सफलताने उन निरंकुश अत्याचारोंको जन्म दिया जिसके वे आज शिकार हैं। उनका व्यापार कुचल दिया गया। आज्ञा दे दी गई कि गिरमिटिया मजदूर किसी किस्मका व्यापार नहीं कर सकते और उन्हें [सदा] गिरमिटिया मजदूर ही रहना पड़ेगा। कहा गया कि भारतीयोंकी आदतें गन्दी हैं और चूँकि उनकी सभ्यता गोरोंकी सभ्यतासे भिन्न है अतः गोरे उनके साथ नहीं रह सकते। उनपर झूठे आरोप लगाये गये और उन्हें भारत वापस भेजने का प्रयत्न किया गया। दक्षिण आफ्रिका वह जगह है जहाँ भारतीय अपने देशके सम्मानको रक्षाके लिए बढ़े और बीस हजार[२] आदमियोंको इसके लिए जेल जाना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें वहाँ बसे रहने दिया गया। १९१४ में भारतीयोंको अनेक अधिकार प्रदान किये गये। [नेटालकी ही भाँति] ट्रान्सवालमें भी वैसा ही हुआ। ट्रान्सवालके भारतीय वहाँ अचल सम्पत्तिके स्वामित्व और व्यापारका अधिकार चाहते थे। किन्तु इससे उन्हें वंचित रखा जा रहा था। वे चाहते थे कि भारत सरकार उन्हें ये अधिकार दिलाये और भारतके सम्मानको सुरक्षित रखनेका प्रयत्न करे। प्रस्तावका दूसरा भाग पूर्वी आफ्रिकासे सम्बन्धित था। भारतीय लोग वहाँ गिरमिटिया प्रथाके अन्तर्गत नहीं, बल्कि व्यापारके लिए गये थे। अनेक मुसलमान भाई जंजीबार गये और वहाँ व्यापारमें इतने सफल हुए कि आफ्रिकी लोग भी उनके प्रभावमें आ गये। उन्हें उन स्थानों में पहुँचने के लिए घने और खतरनाक जंगलोंको पार करना पड़ा और वहाँके निवासियोंसे प्रेमका व्यवहार करते हुए उन्होंने व्यापार शुरू किया। कुछ समय पश्चात् गोरोंने भी उन इलाकोंमें जानेका साहस किया। उन्होंने भारतीयों को सहायता के लिए बुलाया। हमारे सिख भाई युगांडा आदि प्रदेशोंमें गये और भारतीय मजदूरोंके श्रमसे ही वहाँ रेलमार्गका निर्माण सम्भव हुआ। यह सब हो चुकने के बाद गोरोंने भारतीयोंको उस स्थान से, जिसे उन्होंने अपने श्रमसे रहने योग्य बनाया था, निकालना चाहा। भारतीयोंने भारत सरकारसे, जो भारतके हितोंकी संरक्षक है, तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससे, जो भारत राष्ट्रकी प्रतिनिधि संस्था है कहा कि वे इस मामलेमें हाथ डालें और आफ्रिकामें कष्ट भोग रहे अपने भाइयोंकी रक्षा करें।
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