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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्वास नहीं होता। हमें कांग्रेसके इस अधिवेशनके सभापतिकी बात सदा ध्यानमें रखनी चाहिए कि आन्दोलनके बिना हमें कुछ भी नहीं मिल सकता। यदि जनताके अधिकारोंके लिए कांग्रेस इस तरह आन्दोलन न करती तो आजतक हमें कुछ भी प्राप्त न होता। आन्दोलनका मतलब इतना ही है कि हम लोग जो चाहते हैं उस दिशा में बढ़नेका प्रयत्न करना। जिस प्रकार प्रत्येक गतिके माने प्रगति नहीं होते उसी तरह प्रत्येक आन्दोलनके माने भी सफलता नहीं है। अनुशासनरहित आन्दोलन—जिसे वाणी और कर्मकी हिंसाका ही रूप कह सकते हैं—राष्ट्रीय विकास में बाधक होता है और कभी-कभी इसके फलस्वरूप जलियाँवाला बागके कत्लेआम जैसी प्रतिहिंसापूर्ण घटनायें हो जाती हैं। राष्ट्रीय विकासकी पहली शर्त अनुशासनयुक्त आन्दोलन जारी करना है। इसलिए सर्वाधिक उचित आन्दोलन वही है जिसमें आन्दोलन करनेवालोंकी कार्रवाई सर्वथा उचित हो। इसलिए शाही घोषणा तथा शासन सुधारोंके कारण हमारे आन्दोलनकी गति रुकनी या कम नहीं पड़नी चाहिए; बल्कि हमें और अधिक आन्दोलन और सही ढंगकी कार्रवाईके लिए तैयार रहना चाहिए

इसमें सन्देह नहीं कि शासन सुधार अधूरे हैं। उनसे हमें यथेष्ट नहीं मिला है। हमें इससे अधिक मिलना चाहिए था। क्योंकि हम इससे अधिक पानेकी योग्यता रखते हैं। पर ये सुधार ऐसे नहीं हैं जिनको हम अस्वीकार कर दें। बल्कि ये सुधार ऐसे हैं जिनको स्वीकार करके हम प्रगति कर सकते हैं। इसलिये हमारा कर्त्तव्य यही है कि हम शान्तचित्त होकर इनको पूरी तौरसे सफल बनानेके लिये काम करना शुरू कर दें और इस प्रकार उस दिनको निकट लायें जब हम पूर्ण उत्तरदायी शासन सौंपे जानेके योग्य समझे जायेंगे। इसलिए हमें अब आत्मसुधारका आन्दोलन करना चाहिए। हमें अधिक से अधिक चेष्टा करनी चाहिए कि सामाजिक बुराइयाँ हममें से दूर हो जायें, हम एक शक्तिशाली निर्वाचक मंडल तैयार करें और परिषदोंमें हम उन्हीं लोगोंको भेजें जो नाम और पदके भूखे न हों और जो देशसेवाके खयालसे वहाँ जायें।

अंग्रेजों और भारतीयोंके बीच घोर अविश्वास रहा है। जनरल डायर मनुष्यकी मर्यादाको भूल गया और पशुवत् आचरण कर बैठा, इसलिए कि उसके हृदयमें अविश्वास और तज्जनित भय घुसा था। उसे भय था कि कोई उसपर आक्रमण न कर बैठे। सुधारोंकी अपेक्षा शाही घोषणामें ऐसी बातें हैं जो अविश्वास दूर करके विश्वास जमाती हैं। अब देखना केवल यह है कि क्या विश्वासकी यह भावना सिविल सर्विसमें भी पैदा हुई है या नहीं। पर हमें मान लेना चाहिए कि ऐसी भावना पैदा होगी और इसी विश्वाससे हमें काममें जुट जाना चाहिए। इस तरह तत्परता दिखाने में मुझे कोई गलती प्रतीत नहीं होती। विश्वास करना गुण है। अविश्वासका कारण दुर्बलता है। विना किसी तरहके वैमनस्यके, नेकनीयतीके साथ आचरण करके ही हम अपना सन्तोष सबसे अधिक प्रकट कर सकते हैं। हम लोग जितनी तत्परता, विश्वास तथा ईमानदारीसे काम करेंगे, अपने लक्ष्यतक उतनी ही जल्दी पहुँचनेकी आशा कर सकते हैं।

इन कतिपय वर्षोंसे भारतके कल्याणके लिए अनवरत् प्रयत्न और चेष्टा करने वाले यदि कोई व्यक्ति हैं तो वे भारत मन्त्री श्री मॉण्टेग्यु ही हैं। इनके पहले भी