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भाषण : अमृतसर कांग्रेस में सुधार प्रस्तावपर

ई॰ एस॰ मॉण्टेग्युको इन सुधारोंके सम्बन्धमें किये गये परिश्रमके लिए हार्दिक धन्यवाद देती है।[१]

मेरे प्यारे मित्रो,

मैं हिन्दी में बोल चुका हूँ। इस कांग्रेसके अध्यक्ष महोदयकी, जिन्होंने इन तमाम चिन्तापूर्ण दिनों में ऐसी जबरदस्त कठिनाइयोंके बीच—जिनका आप अनुमान भी नहीं लगा सकते—हमारे लिए इतने परिश्रमपूर्वक काम किया है, अनुमतिसे में आपका थोड़ा-सा समय और लूंगा और उन मित्रोंसे अन्तिम बार अपील करूँगा जो इस मामलेमें मेरी बात नहीं समझ पाये हैं। आपने उनकी बात सुनी जो अंग्रेजीमें बोले हैं। मुझे उनको अपना संशोधन पढ़कर सुनाने की जरूरत नहीं है। मेरे नामसे जो संशोधन प्रस्तुत हुआ है उसे आपने देख लिया है। मैं आपको पूरा-पूरा आश्वासन देना चाहता हूँ कि इससे ज्यादा खुशीकी बात मेरे लिए दूसरी कोई न होती यदि मैं इस सभा में परस्पर मतभेद पैदा करनेके लिए आपके समक्ष न आता। परन्तु जब मैंने देखा कि कर्त्तव्य मुझसे अपेक्षा करता है कि मुझे दो शब्द कहने ही चाहिए, चाहे वे मेरे देशके पूज्य भाइयोंके विरुद्ध हों या उनके विरुद्ध जिन्होंने देशके लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया है, और जब मैंने पाया कि उनकी बातोंने मेरे दिल-दिमागको पूरी तरह प्रभावित नहीं किया है और मुझे लगा कि उनके सुझावोंमें निहित स्थितिको स्वीकार करना देशके लिए हितकर नहीं होगा, तब मैंने अनुभव किया कि मुझे कमसे-कम अपनी बात कहनी ही चाहिए और देशके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट रख देनी चाहिए। अपने जीवनमें बराबर मैंने समझौतेका सिद्धान्त समझा है; लोकतन्त्रकी भावनाको समझा है। दोनोंके बारेमें मेरा आदरभाव किसीसे कम नहीं है। लेकिन जीवन-भर मैंने यह भी पाया है कि जो व्यक्ति अपनी अन्तरात्माको आवाजके अनुसार, ईश्वरके अटल नियमोंके अनुसार अपना जीवन ढालना चाहता है, ऐसे व्यक्तिके जीवनमें ऐसे अवसर आते हैं जब उसे अपने प्रियतम मित्रोंकी जुदाईको उसी प्रकार गले लगाना चाहिए जिस प्रकार वह अपने भाईको गले लगाता है, और ठीक ऐसा ही अवसर मेरे सामने आजसे दो दिन पहले आ खड़ा हुआ। यह एक शब्दको इधर से उधर हटानेका मामला नहीं है। यदि में 'निराशाजनक' शब्दको रख सकता तो सच मानिए मैं इस सभाके सामने खड़ा न होता और आपका तथा राष्ट्रका बहुमूल्य समय एक शब्दपर अड़कर बर्बाद न करता। मैं तो आपसे यह कह रहा हूँ कि 'निराशाजनक' शब्द रखना ठीक नहीं है। आपने कल मेरे नामसे एक संशोधन[२] देखा जिसे मैंने वापस

  1. इसके बाद गांधीजी अंग्रेजीमें बोले।
  2. संशोधन यह था : "कांग्रेसकी रायमें हालाँकि सुधार अधिनियम भारतकी मौजूदा परिस्थिति में उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता इसलिए अपर्याप्त और असन्तोषजनक है तथापि कांग्रेस इसे उत्तरदायी सरकारकी दिशा में एक निश्चित कदम मानती है, और इस अधिनियमकी भारी कमियोंको दूर करानेके लिए अवसर मिलते ही आन्दोलन करनेका अपना अधिकार सुरक्षित रखते हुए जनतासे अपील करती है कि सुधारोंको सफल बनाने में अधिकारियोंके साथ सहयोग करे; और माननीय ई॰ एस॰ मॉण्टेग्यु तथा लॉर्ड सिन्हाने भारतकी ओरसे इन सुधारोंके सम्बन्धमें जो परिश्रम किया उसके लिए यह कांग्रेस उन्हें हार्दिक धन्यवाद देती है।"