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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ले लिया है। वह मेरी रायको अधिक सौम्य भाषामें व्यक्त करता था : में अधिक अच्छी अंग्रेजी जाननेका दावा नहीं कर रहा हूँ, लेकिन उस शब्दावलीपर में मुग्ध था, और उसके सम्बन्ध में मेरा अब भी ऐसा ही विचार है। मेरे मत से वह संशोधन उसी बातको ज्यादा सुन्दर शब्दोंमें व्यक्त करता है, किन्तु मैं अपने मनसे कहता हूँ, और कल मैंने अपनेको समझाया कि "भाषाकी सुगढ़ताकी चिन्ता मत करो। अगर किसी दूसरी शब्दावलीसे तुम्हें वही सार-तत्त्व प्राप्त होता है तो तुम उसे स्वीकार कर लो।" इसलिए मैंने प्रस्तावके तीनों अनुच्छेदोंको ज्यों-का-त्यों ले लिया है, केवल 'निराशाजनक' विशेषण छोड़ दिया है क्योंकि यह शब्द भी मेरी भावनाओंको व्यक्त करता है। मैं श्री तिलक महाराज, श्री दास तथा अन्य मित्रोंकी तरह ऐसा मानता हूँ कि हम आज पूर्ण उत्तरदायी सरकारके योग्य हैं। (हर्ष-ध्वनि) में यह भी मानता हूँ कि हमें आज जो मिल रहा है वह कांग्रेसके आदर्शसे कहीं कम है। (हर्ष-ध्वनि) मैं यह मानता हूँ कि हमें यथासम्भव शीघ्रसे-शीघ्र उत्तरदायी सरकार चाहिए। मैं उनसे सहमत हूँ। फिर क्या हो? वह सब तो खत्म हो गया। परन्तु हमें अपना भविष्य कैसे बनाना है, यही एक ऐसा प्रश्न है जिसपर उन्होंने विचार किया और मैंने भी विचार किया। उनका निष्कर्ष यह रहा कि देशको जिस रास्ते जाना है, जाने दो। हम इस मंचसे देशको नेतृत्व नहीं प्रदान करेंगे। इसका क्या अर्थ था? इसका जो अर्थ मैंने समझा वह यह था कि हमारी नीति रुकावट डालनेवाली नहीं होनी चाहिए, हमारे दिमागमें 'सहयोग' की भावना हो, लेकिन उसे यदि किन्हीं निश्चित शर्तोंपर हमें सहयोग करना है तो मैं शर्तोंको निर्धारित कर लेना चाहिए। परन्तु हमें अपना मुद्दा चाहिए। फिर उनका यह भी कहना था कि हमें अपने देना चाहिए? आखिरकार श्री मॉण्टेग्यु क्या हैं? वे हमारे अपना कर्त्तव्य थोड़ा-सा निभा दिया तो आप उन्हें धन्यवाद क्यों देना चाहते हैं? यह ऐसा रुख है जिसे यदा-कदा माना तो जा सकता है, परन्तु मैं इस विशाल सभासे कहूँगा कि यह रुख आपको शोभा नहीं देता। यदि आप अपने सच्चे दिलसे कह सकते हैं कि श्री मॉण्टेग्युने भारत-मन्त्रित्वके अपने समूचे कार्यकालमें एक काम किया है, और वह यह कि लॉर्ड सिडेनहम और उनके साथियों द्वारा इस विधेयकके विरोधका सामना किया है, और उसकी उदार व्यवस्थाओं में हेरफेर करवाने की कोशिशोंको नाकामयाब कर दिया है, यद्यपि में स्वीकार करता हूँ कि ऐसी व्यवस्थाएँ विधेयकमें काफी कम हैं, तो मैं कहता हूँ कि इस हदतक और सिर्फ इसी हदतक श्री मॉण्टेग्यु हमारे सम्पूर्ण हृदयसे धन्यवादके पात्र हैं। (तुमुल हर्ष-ध्वनि) मेरे संशोधनका केवल इतना ही प्रयोजन है।

प्रकट न किया जाये। कहता हूँ कि हमें उन पूर्णतः स्पष्ट कर देना सेवकको क्यों धन्यवाद सेवक हैं। यदि उन्होंने मेरे संशोधनका यह भी अर्थ है कि हम यह न कहें कि ये सुधार उस अर्थ में 'निराशाजनक' हैं जिस अर्थ में उस शब्दका प्रयोग यहाँ हुआ है। मैं आपसे यह निवेदन करता हूँ कि यदि एक व्यक्ति मेरे पास आता है और मुझे निराश करता है। तो मैं उससे सहयोग नहीं करता। यदि मुझे खट्टी पाव रोटी मिलती है तो मैं उसे