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भाषण : अमृतसर कांग्रेसमें सुधार प्रस्तावपर

अस्वीकार कर देता हूँ; उसे नहीं लेता। परन्तु यदि मुझे ऐसी पाव रोटी मिलती है जो पर्याप्त नहीं है या जिसमें पर्याप्त रुचिकर तत्त्व नहीं हैं, तो मैं यह कोशिश करूँगा कि बाद में उसमें रुचिकर तत्त्व मिलाये जायें, परन्तु में एक ग्रास चखकर देखता हूँ; तो वह 'निराशाजनक' नहीं लगती। अतएव मेरे संशोधनका प्रयोजन इससे अधिक या कम कुछ भी नहीं है। आज देशके सम्मुख जैसी स्थिति है, उसी रूपमें उसका सामना करना और जैसा कि में कहता हूँ यदि तिलक महाराज आपसे कहते हैं कि हम सुधार कानूनका उपयोग करने जा रहे हैं, जो उन्हें जरूर करना चाहिए, और जैसा कि उन्होंने श्री मॉण्टेग्युको पहले ही बताया है, जैसा कि उन्होंने देशको बताया है कि हम सुधारोंका पूरा लाभ उठाने जा रहे हैं, तो मैं कहता हूँ कि आप अपने प्रति सच्चे रहें, देशके प्रति सच्चे रहें और देशको बताइए कि हम यही करने जा रहे हैं। परन्तु यदि आप यह कहना चाहते हैं कि वहाँ जानेके बाद आप कोई रुकावट डालेंगे, तो वह भी बताइये। परन्तु रुकावटके औचित्यके प्रश्नपर तो यह कहूँगा कि भारतीय सभ्यताकी माँग है कि हम उस व्यक्तिका भरोसा करें जिसने दोस्तीका हाथ बढ़ाया है। सम्राट्ने दोस्तीका हाथ बढ़ाया है। (हर्ष ध्वनि) मैं आपसे कहता हूँ कि श्री मॉण्टेग्युने दोस्तीका हाथ बढ़ाया है और यदि उन्होंने दोस्तीका हाथ बढ़ाया है तो उनके इस मैत्रीके हाथको मत ठुकराइए। भारतीय संस्कृति विश्वास, पूर्ण विश्वासकी अपेक्षा रखती है और यदि हम पर्याप्त पौरुष सम्पन्न हैं, तो हम भविष्यसे भयभीत नहीं होंगे, वरन् पुरुषोचित ढंगसे भविष्य का सामना करेंगे और कहेंगे ठीक है, श्री मॉण्टेग्यु, ठीक है, नौकरशाही के सभी अधिकारियों, हम आपका विश्वास करने जा रहे हैं; इस तरह हम आपको एक कठिनाई में डाल देंगे, और जब आप हमें रोकेंगे, जब आप देशकी प्रतिक्रिया को रोकेंगे तो आप ऐसा अपनी जोखिमपर करेंगे? यह है वह पुरुषोचित रुख जिसे मैं आपसे अपनानेको कह रहा हूँ। इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि आप अपने सच्चे दिलसे यह महसूस करते हैं कि ये सुधार आपको अपने लक्ष्यकी ओर आगे बढ़ने में सहायक हैं, यदि आपका विश्वास है कि इन सुधारोंका उपयोग पूर्ण उत्तरदायी सरकारके लिए सोपानकी तरह हो सकता है तो श्री मॉण्टेग्युको उनका प्राप्य दीजिये और उनसे कहिये कि 'हम आपको धन्यवाद देते हैं।' और जब आप श्री मॉण्टेग्युसे कहते हैं कि 'हम आपको धन्यवाद देते हैं' तो उसका स्वाभाविक अर्थ यह भी है कि हम उनके साथ सहयोग करेंगे। यदि आप श्री मॉण्टेग्युसे कहते हैं कि 'हम आपको धन्यवाद नहीं देते, हम जानते हैं कि आपके सुधार क्या हैं, हम आपके इरादे समझते हैं, हम उन इरादोंको हर कदमपर आपके काममें बाधा डालकर विफल करेंगे;' यदि आपका रुख ऐसा है तो उसे संसारके सामने स्पष्ट रखिए और वैसा ही काम कीजिए। मैं इस रुखको चुनौती दूँगा। और भारतके एक छोरसे दूसरे छोरतक जाऊँगा और कहूँगा कि हम अपनी संस्कृतिमें अनुत्तीर्ण हो जायेंगे और हमारी संस्कृति जो अपेक्षा करती है कि हम अपनी ओर बढ़ाये गये मैत्रीके हाथका स्वागत करें उस कर्त्तव्यको यदि हम नहीं निभाते तो हम अपने स्थानसे नीचे गिर जायेंगे। उनका अविश्वास करनेसे में इनकार करता हूँ और मैं कहता हूँ कि जहाँतक देशकी भलाईको बढ़ावा