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वक्तव्य : उपद्रव जाँच समितिके सामने

पत्र[१] मिल गया है। यह जाहिर है कि आदेश लगभग उसी समय जारी किया गया जब मैंने दिल्लीसे अपना पत्र लिखा था।[२] मैं देखता हूँ कि मुझे आपका नोटिस मिलने के इक्कीसवें दिन या उसके एक दिन बाद अदालतमें मौजूद होना है। नोटिस मुझे इसी २ तारीखको दिया गया। क्या इसका यह अर्थ है कि मामलेकी सुनवाई २३ तारीखको नहीं होगी ? में केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि मैंने अभी पंजाबमें अपना काम समाप्त नहीं किया है। उम्मीद है कि मैं २० तारीखके लगभग पंजाबमें होऊँगा और वहाँ करीब २ महीने रहूँगा। इसलिए यदि मुख्य न्यायाधीश महोदय इतने दिनोंकी मोहलत दे सकें तो मैं अनुगृहीत होऊँगा।

मैं यह भी उल्लेख कर दूँ कि मैं वकील नहीं खड़ा करना चाहता और न अपने बचावमें कोई सफाई देना चाहता हूँ। मैं सिर्फ एक वक्तव्य देना चाहता हूँ जो मेरे दिल्लीसे लिखे ११ दिसम्बर, १९१९ के पत्र में निहित आशयके अनुसार होगा। यह भी चाहता हूँ कि सुनवाईकी तारीख जनताको विदित न हो। अतएव आप कृपया मुख्य न्यायाधीश महोदय से मिलकर मुझे सूचित करें कि क्या सुनवाईकी कोई तारीख अप्रैलमें रखी जा सकती है?[३]

मैं समझता हूँ कि प्रकाशक श्री देसाईके विरुद्ध मामलेकी सुनवाई भी उसी दिन होगी जिस दिन मेरे विरुद्ध मामलेकी।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७१२८-ए) की फोटो-नकल से।

 

२४०. वक्तव्य : उपद्रव जाँच समितिके सामने

[साबरमती
जनवरी ५, १९२०]

पिछले तीस वर्षसे में लोगोंको सत्याग्रहकी सीख देता रहा हूँ और स्वयं भी उसपर आचरण करता रहा हूँ और आज मैं इसे जिस रूपमें जानता हूँ उसके आधार पर कह सकता हूँ कि सत्याग्रहके सिद्धान्त सतत् विकासशील हैं।

  1. देखिए "पत्र : बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको", ११-१२-१९१९।
  2. वास्तव में पंजीयकने गांधीजीका ११ दिसम्बरका पत्र मिलनेसे पहले ही उनके खिलाफ एक कैफियत तलबीका आदेश जारी करानेकी अर्जी दी थी जिसमें उनसे कैफियत माँगी गई थी कि "उन्होंने उक्त पत्रको प्रकाशित करके अदालतकी जो मानहानि की है, इसके लिए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों न की जाये।" यह अर्जी न्यायाधीश शाह और न्यायाधीश क्रम्पने उसी दिन (११ दिसम्बरको) मँजूर कर ली थी, लेकिन कैफियत तलबीका आदेश वास्तव में १९ दिसम्बरको जारी किया गया था।
  3. २७ फरवरीको गांधीजीने पंजीयकको फिर एक पत्र लिखा और इसके साथ ही अपना और महादेवभाई दोनोंके वक्तव्य भी भेजे। कैफियत तलबीकी सुनवाई ३ मार्च तकके लिए स्थगित कर दी गई। ३ मार्चको गांधीजी और महादेव देसाई अदालत में उपस्थित हुए। अदालतने उन्हें अदालतकी मान-हानिका दोषी पाया किन्तु भविष्य में सावधानी बरतने की चेतावनी देकर छोड़ दिया। देखिए खण्ड १७, "क्या यह न्यायालयकी मानहानि थी?", १०-३-१९२०।