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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सत्याग्रह और अनाक्रामक प्रतिरोधमें जमीन-आसमानका अन्तर है। जहाँ अनाक्रामक प्रतिरोधकी कल्पना कमजोर लोगोंके अस्त्रके रूपमें की गई है और उसमें अपने उद्देश्य की प्राप्तिके लिए शारीरिक शक्ति या हिंसाका निषेध नहीं किया गया है, वहाँ सत्याग्रहकी कल्पना सबलसे-सबल लोगोंके अस्त्र के रूपमें की गई है और उसमें किसी प्रकारकी हिंसाके लिए कोई गुंजाइश नहीं रखी गई है।

इस सत्याग्रह शब्दको मैंने ही दक्षिण आफ्रिकामें उस शक्तिको अभिव्यक्ति देने के लिए गढ़ा था जिसका प्रयोग वहाँके भारतीयोंने पूरे आठ वर्षतक किया और इसे गढ़ने का उद्देश्य उस समय इंग्लैण्ड और दक्षिण आफ्रिकामें अनाक्रामक प्रतिरोध नामसे जो आन्दोलन चल रहा था, उससे सत्याग्रह आन्दोलनका भेद स्पष्ट कर देना था।[१]

व्युत्पत्तिकी दृष्टिसे सत्याग्रहका अर्थ है सत्यपर दृढ़ रहना, अर्थात् सत्यबल। इसे मैंने प्रेमबल या आत्मबल भी कहा है। सत्याग्रहपर अमल करते हुए प्रारम्भिक अवस्थामें ही मुझे पता चल गया कि सत्यके पालनमें अपने प्रतिपक्षीके प्रति किसी प्रकारकी हिंसा करनेकी गुंजाइश नहीं बल्कि उसे धैर्य और सहानुभूति के बलपर गलत रास्ते से हटाना है। कारण यह है कि जो चीज एकको सत्य लगती है वही दूसरेको असत्य लग सकती है। और धैर्यका मतलब है कष्टोंको अपने ऊपर ओढ़ लेना। इस प्रकार इस सिद्धान्तका अर्थ हुआ सत्यके पक्षकी स्थापना—लेकिन अपने प्रतिपक्षीको कष्ट देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर।

लेकिन राजनीतिक क्षेत्रमें जन-संघर्षके तौरपर इसका अर्थ मुख्यतः अन्यायपूर्ण कानूनोंके रूपमें की गई गलतियोंका विरोध करना ही होता है। जब आप प्रार्थनापत्र आदि देकर कानून बनानेवालोंको उनकी गलती समझाने में असमर्थ हो जाते हैं तो आपके सामने, अगर आप उस गलती के सामने झुक जानेको तैयार नहीं हैं तो, एक ही उपाय रह जाता है—या तो आप उस गलत कानून बनानेवाले व्यक्तिको शारीरिक बलसे अपने सामने झुकने को बाध्य करें या फिर कानूनको तोड़ने के लिए जो दण्ड-जुर्माना भोगना पड़ेगा उसे आमन्त्रित करके अपनेको कष्टमें डालें और इस प्रकार उस व्यक्तिको अपने सामने झुकायें। इसीलिए सत्याग्रहको आम लोग मुख्यतः सविनय अवज्ञा या सविनय प्रतिरोधके रूपमें ही देखते हैं। यह सविनय इस मानमें है कि इसमें अपराध जैसी कोई चीज नहीं है।

कानून तोड़नेवाला कानूनको चोरी-छिपे तोड़ता है और उसके दण्डसे बचनेकी कोशिश करता है—लेकिन सविनय प्रतिरोधी ऐसा नहीं करता। वह जिस राज्य में रहता है उस राज्यके कानूनोंका बराबर पालन इसलिए करता है कि उन्हें वह समाजके हितकी दृष्टिसे अच्छा समझता है—इसलिए नहीं कि उस कानूनके पीछे जो सत्ता है उससे वह डरता है। हालांकि बहुत कम ऐसा होता है लेकिन कभी-कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जब सत्याग्रही कुछ कानूनोंको इतना अन्यायपूर्ण मानता है कि उनका पालन करना अपमानकी बात हो जाती है। तब वह खुल्लम-खुल्ला और विनयपूर्वक उन कानूनोंको तोड़ता है और उन्हें तोड़नेपर जो दण्ड-जुर्माना दिया

  1. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ १२६-७ और दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय १२।