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वक्तव्य : उपद्रव जाँच समितिके सामने

जाता है उसे चुपचाप सह लेता है। और कानून बनानेवालोंकी कार्रवाईके प्रति अपना विरोध व्यक्त करनेके लिए वह यदि चाहे तो ऐसे अन्य कानूनोंकी भी अवज्ञा कर सकता है जिनका उल्लंघन करनेमें कोई नैतिक बाधा नहीं है।

मेरे विचारसे सत्याग्रह कुछ इतनी सुन्दर और सक्षम चीज है तथा उसका सिद्धान्त इतना सीधा-सादा है कि बच्चोंको भी इसकी सीख दी जा सकती है। इसकी सीख मैंने आम तौरपर गिरमिटिया भारतीय कहे जानेवाले हजारों स्त्री-पुरुष और बच्चोंको दी, और उसका परिणाम बहुत शानदार रहा।

जब रौलट विधेयक प्रकाशित किये गये तो मुझे लगा कि ये तो मानवीय स्वतंत्रतापर इतने अधिक बन्धन लगा देते हैं कि उनका अधिक से अधिक विरोध किया जाना चाहिए। और मैंने यह भी देखा कि भारतीयोंमें इन विधेयकोंके प्रति विरोधकी भावना सर्वव्यापी है। मैं नम्रतापूर्वक कहूँगा कि कोई राज्य चाहे कितना भी निरंकुश हो, उसे ऐसा कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है जो सारे जनसमुदाय के लिए अरुचिकर हो—और संवैधानिक प्रणालियों तथा पूर्वोदाह्रणोंसे मार्गदर्शन ग्रहण करने-वाली भारत सरकार के लिए तो यह बात और भी लागू नहीं होती। मुझे यह भी लगा कि इसके परिणामस्वरूप जो आन्दोलन उठ खड़ा होनेवाला है, उसे अगर बिना किसी परिणामके दब जाने या हिंसात्मक मार्ग अपनानेसे रोकना है तो कोई निश्चित ढंगका निर्देश देना जरूरी है।

इसलिए मैंने देशके सामने सत्याग्रहका उपाय रखनेका साहस किया, जिसमें मैंने उसके सविनय प्रतिरोधवाले पक्षपर विशेष बल दिया। और चूँकि यह आन्दोलन विशुद्ध रूपसे अन्तरकी चीज है और इसका उद्देश्य मनुष्य के मन-प्राणको पवित्र बनाना है, इसलिए मैंने एक दिनके लिए—यानी छः अप्रैलको—उपवास, प्रार्थना और सारा कारोबार बन्द रखने को कहा। इसके लिए कोई संगठित योजना नहीं बनाई गई थी और न पहलेसे कोई बड़ी तैयारी ही की गई थी। फिर भी सारे भारतमें—यहाँ तक कि छोटे-छोटे गाँवोंमें भी लोगोंने मेरे आह्वानका बड़ा अच्छा उत्तर दिया। यह योजना मनमें आते ही मैंने इसे जनताके सामने रख दिया। ६ अप्रैलको लोगोंने कोई हिंसात्मक कार्रवाई नहीं की और न पुलिससे ही उनकी कोई ऐसी टक्कर हुई जिसका उल्लेख किया जा सके। हड़ताल सर्वथा स्वेच्छाजनित और स्वयंस्फूर्त थी। मैं साथमें वह पत्र[१] भी नत्थी कर रहा हूँ जिसमें इस योजना की घोषणा की गई थी।

६ अप्रैलके कार्यक्रम के बाद सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होने को थी। इस उद्देश्य से सत्याग्रह सभाकी समितिने उल्लंघनार्थ कुछ राजनीतिक कानून चुन लिये थे। फिर हमने निषिद्ध किन्तु सर्वथा स्वस्थ ढंगके साहित्यका, उदाहरणार्थ मेरे द्वारा होमरूलपर लिखी ई पुस्तक[२] [हिन्द स्वराज्य], रस्किनके 'अन्टु दिस लास्ट' का अनुवाद [सर्वोदय] तथा 'डेथ ऐंड डिफेंस आफ़ साक्रेटिस' आदिका, वितरण प्रारम्भ किया।

  1. देखिए खण्ड १५, ५४ १५०-५१।
  2. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ६-६९।