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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं किया जा सकता कि ६ अप्रैलको भारत एक अभूतपूर्वं प्राण-शक्तिसे उद्वेलित हो उठा। जो लोग भयभीत रहा करते थे, उनके मनसे सत्ताका भय बिलकुल दूर हो गया। इसके अतिरिक्त अभीतक जनसाधारण तन्द्रामें पड़ा हुआ था। दरअसल नेताओंने उसे जगानेका प्रयास नहीं किया था; उसमें अनुशासनका अभाव था। जनताको एक नई शक्ति प्राप्त हो गई थी, लेकिन वह नहीं जानती थी कि यह शक्ति क्या है और इसका उपयोग कैसे किया जाये।

दिल्ली में जो लोग अभीतक बिलकुल निश्चल पड़े हुए थे, उन्हें नियन्त्रणमें रखना नेताओंको कठिन जान पड़ा। अमृतसरमें डॉ॰ सत्यपालको यह चिन्ता लगी हुई थी कि मैं वहाँ जाकर लोगोंको सत्याग्रहका शान्तिपूर्ण स्वरूप समझाऊँ। दिल्लीसे स्वामी श्रद्धानन्दने और अमृतसरसे डॉ॰ सत्यपालने मुझे लिख भेजा कि मैं लोगोंको शान्त करने और सत्याग्रहका स्वरूप समझाने के लिए दिल्ली और अमृतसर जाऊँ। मैं पहले कभी अमृतसर नहीं गया था और सच तो यह है कि पंजाब भी नहीं गया था। इन दोनों सन्देशोंको अधिकारियोंने देखा और इस प्रकार वे इस बातसे अवगत हो गये कि मुझे उक्त दोनों जगहों में शान्तिपूर्ण उद्देश्य से बुलाया गया है।

मैं दिल्ली और पंजाबकी यात्राके लिए ८ अप्रैलको बम्बई से रवाना हुआ और डॉ॰ सत्यपालको मैंने टेलीफोन भी कर दिया कि वे मुझसे दिल्लीमें मिलें। इससे पहले हम लोग कभी नहीं मिले थे। लेकिन मथुरासे आगे निकलनेपर मुझे एक आदेश दिया गया, जिसमें मुझे दिल्ली प्रान्त में प्रवेश करनेसे मना किया गया था। मुझे लगा कि इस आदेशकी अवहेलना मुझे करनी ही चाहिए और इसलिए में अपनी यात्रापर आगे बढ़ा। पलवल में मुझे पंजाबमें प्रवेश करने और बम्बई प्रान्त से बाहर जानेसे मना करते हुए एक आदेश दिया गया। मुझे पुलिसके एक दलने गिरफ्तार करके उसी स्टेशनपर ट्रेन से उतार लिया। जिस पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्टने मुझे गिरफ्तार किया था, उसने मेरे साथ बड़ा शिष्ट व्यवहार किया। जो गाड़ी सबसे पहले मिल सकी उसीसे मुझे मथुरा ले जाया गया और वहाँ से एक मालगाड़ी में बैठाकर सुबह सवाई माधोपुर पहुँचाया गया। वहाँ मुझे पेशावरसे आनेवाली बम्बई मेलमें बैठाया गया और सुपरिन्टेन्डेंट बाउरिंगकी देख-रेख में रखा गया। १० अप्रैलको बम्बईमें मुझे छोड़ दिया गया।

लेकिन अहमदाबाद तथा वीरमगाँवके लोगोंको, बल्कि आम तौरसे सारे गुजरातके लोगोंको, मेरी गिरफ्तारीकी खबर लग गई थी। वे अपना आपा खो बैठे, दुकानें बन्द कर दी गई, भीड़ जमा होने लगी और फिर खून-खराबी, आगजनी, लूटपाट, तार काटने तथा गाड़ियोंको पटरी से उतारनेके प्रयत्नोंका सिलसिला चल पड़ा।

इससे कुछ ही दिन पहले मैंने खेड़ाकी प्रजाके बीच काम किया था और हजारों स्त्री-पुरुषोंसे मिला था। मैंने अनसूयावेन साराभाईके कहनेपर उन्हींके साथ अहमदाबाद के मिल मजदूरोंके बीच भी काम किया था। मिल मजदूर उनके परोपकार-कार्यकी कद्र करते थे और उनके प्रति उन लोगों के मनमें बड़े पूज्य भाव हैं। सो जब यह गलत अफवाह उड़ी कि वे भी गिरफ्तार कर ली गई हैं तो अहमदाबाद के मजदूरोंके क्रोधकी कोई सीमा न रही। हम दोनों वीरमगाँवके मिल मजदूरोंसे उनके कष्टकी घड़ी में