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वक्तव्य: उपद्रव जाँच समितिके सामने

मिले थे और उनके लिए बीच-बचाव किया था। और मेरा पक्का खयाल है कि जो कुछ अति हुई वह मेरी गिरफ्तारी तथा अनसूयाबेन साराभाईकी गिरफ्तारीकी अफवाहको लेकर फैलनेवाली क्षोभकी भावनाके कारण ही हुई।

मैं प्रायः सारे भारतके सामान्य लोगोंसे मिला हूँ और उनसे खुलकर बातें भी की हैं। मैं यह नहीं मानता कि इन हिंसात्मक उपद्रवोंके पीछे कोई क्रान्तिकारी आन्दोलन काम कर रहा था। इन उपद्रवोंको तो "विद्रोह" की संज्ञाका गौरव भी नहीं दिया जा सकता।

और मेरे विचारसे सरकारने अपराधियोंपर शासन के विरुद्ध युद्ध छेड़नेके आरोप में जो मुकदमे चलाये, वह उसकी गलती थी। इस तरह जल्दबाजी में उसने जो रुख अपनाया उसके कारण या तो उन लोगोंको कष्ट उठाने पड़े हैं, जो उसके पात्र नहीं थे, या लोगोंको जितना चाहिए था, उससे अधिक कष्ट उठाना पड़ा। बेचारे अहमदाबादवासियों पर जो जुर्माना ठोका गया वह बहुत भारी था, और जिस ढंगसे इसे मजदूरोंसे वसूल किया गया वह अनावश्यक रूपसे सख्त और तकलीफदेह था। मजदूरोंपर १,७६,००० (एक लाख छिहत्तर हजार) रुपयेका जुर्माना ठोक देनेके औचित्य में मुझे सन्देह है। बारेजडीके किसानों तथा नडियादके बनियों और पाटीदारोंसे जो हर्जाना वसूला गया वह बिलकुल अनुचित था—बल्कि प्रतिशोधको भावनासे प्रेरित था। मेरा खयाल है कि अहमदाबाद में मार्शल लॉ लागू करना भी अनुचित था और इसपर जिस विवेकहीन ढंगसे अमल किया गया उसके कारण अनेक निर्दोष लोगोंको अपने प्राण गँवाने पड़े।

लेकिन साथ ही इस सम्बन्ध में मैंने जिन सीमाओंका उल्लेख किया है, उनको ध्यानमें रखते हुए मुझे इस बातमें कोई सन्देह नहीं है कि बम्बई प्रान्त में अधिकारियोंने ऐसे समय में, जब वातावरण में पारस्परिक सन्देह और अविश्वासका जोर था, और जो गाड़ी शान्ति स्थापित करनेके लिए सैनिकोंको ला रही थी उसे उलट देनेके प्रयत्नके कारण अधिकारीगण स्वभावतः क्रुद्ध हो उठे थे, काफी संयमसे काम लिया।[१]

[अंग्रेजीसे]
एविडेंस बिफोर द डिसऑर्डर्स इन्क्वायरी कमेटी : खण्ड २
  1. इस वक्तव्यके साथ तीन कागज और संलग्न थे। संलग्न कागजात 'ख' और 'ग' के लिए देखिए खण्ड १५ के क्रमशः पृष्ठ २२८-३२ और २१४-१६। 'घ' उपलब्ध नहीं है। यह वक्तव्य यंग इंडिया १४-१-१९२० के अंक भी प्रकाशित हुआ था।