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२४१. पत्र : उपद्रव जाँच समितिके मंत्रीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
[जनवरी ५, १९२०][१]

प्रिय महोदय,

मैं उपद्रव जाँच समितिके विचारार्थ इस पत्रके साथ अपना वक्तव्य[२] भेज रहा हूँ। यदि समिति मेरा बयान लेना चाहे तो वह मुझे कोई हालकी तारीख देनेकी कृपा करे ताकि मैं अपने अन्य कार्यक्रमोंके लिए मुक्त रह सकूँ। मैं इसका अनुग्रह मानूँगा।

वक्तव्य भेजनेमें विलम्ब हुआ, इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। अन्य कार्यों में व्यस्त रहने के कारण ही यह विलम्ब हुआ। मैं कल ही अहमदाबाद लौटकर आ पाया हूँ।

हृदयसे आपका,

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ६९८८) की फोटो-नकलसे।
 

२४२. कांग्रेस

कांग्रेसका अधिवेशन इस बार हममें से बहुतोंके लिए एक तीर्थयात्रा थी, क्योंकि वह अमृतसर में हुआ था। हजारों प्रतिनिधि और दर्शक कांग्रेस सप्ताहमें तीर्थयात्रीकी भावनासे जलियाँवाला बाग देखने गये थे। कहा जाता है कि कुछने बागकी खूनसे सनी मिट्टीपर अपना माथा टेका और कुछ उसमें से थोड़ी-सी मिट्टी पवित्र निधिके रूप में रखने के लिए अपने साथ ले गये। कुछ लोगोंने उसे विभूतिकी तरह अपने माथेपर मला। सभी लोग अपना पुनीत कर्त्तव्य समझकर बागमें गये। इसमें सन्देह नहीं कि बहुतसे लोग कांग्रेस में उन लोगोंके प्रति सम्मान प्रकट करने गये थे जो वहाँ निरपराध मारे गये थे।

स्वागत समिति के अध्यक्ष स्वामी श्री श्रद्धानन्दजी और माननीय पं॰ मोतीलाल नेहरू के भाषण संजीदगीके नमूने थे। वे सचाईकी भावनासे ओत-प्रोत थे। दोनों ही भाषणोंपर वक्ताके व्यक्तित्वकी छाप थी। स्वामीजीके भाषण में धार्मिकताका पुट था और वह मानव-जातिके प्रति सद्भावनासे पूर्ण था। उन्होंने कहा : "यदि हमें एन्ड्रयूज, वेडरबर्न, ह्यूम, हार्डिंग और ऐसे ही अन्य व्यक्तियोंसे प्रेम है तो हम अंग्रेजोंसे घृणा कैसे कर सकते

  1. मूलमें तारीख ५ अप्रैल है जो स्पष्टत: भूल है।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।