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कांग्रेस

हैं? हमें अंग्रेजोंको अपने प्रेमसे जीतना चाहिए।" पण्डितजीकी भाषा बहुत शिष्ट और संयत होते हुए भी कटु हो जाती है। जब वे पंजाबके दुःखद काण्डके किस्से बताते हैं तो आँखोंमें बरबस आँसू भर आते हैं। उन्होंने अपनी पैनी कानूनी दृष्टिसे पंजाबकी घटनाओंका विश्लेषण किया है और उनका मन बहुत कठोर हो गया है। उनकी माँग है कि अपराधियोंको कड़ा दण्ड दिया जाये।

अध्यक्षका भाषण अंग्रेजीमें था इसलिए उसके प्रभावमें कमी रही। उन्हें लगभग १५,००० लोगोंके सामने एक विदेशी भाषामें अपना भाषण पढ़ते देखकर दुःख होता था। उपस्थित लोगों में से सातवाँ भाग भी उनकी अंग्रेजीको नहीं समझ सकता था। कांग्रेसकी कार्रवाईसे यह निर्विवाद रूपसे सिद्ध हो गया है कि पूरी नहीं तो अधिकांश कार्रवाई हिन्दी में चलायी जानी चाहिए। यदि हम जन-साधारणके लिए काम करना और उन्हीं में से प्रतिनिधि लेना चाहते हैं तो हमारे सामने यही मार्ग रह जाता है। मध्य प्रदेश, संयुक्त प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और बिहारमें केवल हिन्दुस्तानी ही बोली जाती है और मद्रास प्रेसीडेन्सीके अलावा भारतके दूसरे भागों में हिन्दी सामान्यतः समझी जाती है, क्योंकि इस भाषा और अन्य प्रान्तोंकी देशी भाषाओंका स्रोत एक ही है। कठिनाई एकमात्र मद्रासके कारण उत्पन्न होती है। उस प्रेसीडेंसीके कुछ सौ प्रतिनिधियोंके लिए उन हजारों प्रतिनिधियोंपर, जो अंग्रेजी नहीं समझ सकते किन्तु जो थोड़ी या बहुत हिन्दुस्तानी समझ सकते हैं, जोर-जबरदस्ती करना उचित न होगा। एकमात्र सीधा, कम खर्चीला और राजनीतिक दृष्टिसे उचित मार्ग यही है कि कांग्रेसकी कार्रवाई मुख्यतः हिन्दुस्तानीमें चलाई जाये और द्राविड़ भाषाएँ बोलने-वाले सदस्योंको अंग्रेजी या तमिल-तेलगूमें बोलनेकी स्वतन्त्रता हो। मैं मानता हूँ कि कुछ सालतक विषय समितिकी कार्रवाई अंग्रेजीमें चलती रहे; परन्तु यदि हम कांग्रेसके द्वारा देशको ठीक तरहकी राजनीतिक शिक्षा देना चाहते हैं तो प्रत्येक व्यक्तिको यह बात स्पष्टतः समझ लेनी चाहिए कि यह कार्य केवल हिन्दीके माध्यम से ही किया जा सकता है। इसलिए मेरा विश्वास है कि मद्रासके जो लोग अखिल भारतीय सार्वजनिक कार्य करना चाहते हैं और कांग्रेसके प्रतिनिधि होनेकी महत्त्वाकांक्षा रखते हैं, वे जल्दी ही हिन्दी सीख लेंगे। उन्हें मद्रास प्रेसीडेन्सीमें हिन्दी सीखने की सुविधाएँ प्राप्त हैं और यदि वे हिन्दी पढ़ना अभी आरम्भ कर दें और प्रति दिन कमसे कम एक घंटा नियमित रूपसे खर्च करें तो सालके अन्ततक वे सामान्यतः कांग्रेसकी कार्रवाईको समझ सकेंगे। अवश्य ही सभी यह मानेंगे कि प्रतिनिधि हर साल हिन्दुस्तानीकी जो माँग करते हैं उसका अब अधिक विरोध नहीं किया जा सकता।

एक दूसरी खराबी, जो अधिकाधिक बढ़ती जाती है, दूर की जानी चाहिए। अध्यक्ष अपना भाषण पढ़ रहे थे; किन्तु उनके भाषणको बहुत कम लोग समझ सके। अच्छे से अच्छा नेता भी अपने श्रोताओंका ध्यान एक घंटे से अधिक समयतक नहीं खींचे रह सकता। अध्यक्षका भाषण लम्बा था, परन्तु वह अनिवार्य था। वह छपे हुए अड़तीस फुलस्केप पृष्ठोंमें आया था। गनीमत है कि पण्डित [मोतीलाल] नेहरू पढ़ते समय कई पृष्ठ छोड़ गये। यदि उन्होंने पूरे अड़तीस पृष्ठोंको पढ़नेका आग्रह किया होता तो उन्हें तीन घंटेसे कम न लगते। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि स्वागत-

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