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कांग्रेस

को रोकने के लिए शरीर बलके प्रयोगकी अपेक्षा लोकमत ज्यादा बड़ा और सक्षम साधन है। इसलिए अपने व्यवहारके औचित्य के प्रतीकस्वरूप और देशके मार्गदर्शनके लिए मैं इस प्रस्तावको महत्वकी की दृष्टिसे प्रथम स्थान देता हूँ। कांग्रेसके ये प्रस्ताव, जिनपर मुख्यतः लोगोंको कोई कार्रवाई करनेकी जरूरत है, लोकमतके निर्माणके लिए महत्त्वपूर्ण हैं। और मुझे आशा है कि कार्यकर्त्ता इस प्रस्तावके पीछे जो सत्य है उसकी पूरी शक्तिको समझते हुए उचित समयपर लोगोंको समझायेंगे कि उन्हें हिंसासे बचने की जरूरत है।

निन्दाके इस प्रस्तावके बाद दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव सुधारोंके सम्बन्धमें था। यद्यपि मैं इस कथनसे पूर्णतः सहमत हूँ कि भारत अब उत्तरदायी शासनके योग्य है, किन्तु मैं एक क्षणके लिए भी यह विश्वास नहीं करता कि हम इसे उद्योग किये बिना प्राप्त कर सकते हैं। यह उद्योग या तो प्रतिरोधके तरीके अपनाकर कर सकते हैं या सहयोग करके। स्वस्थ प्रतिरोध हमारे अस्तित्वकी एक शर्त है। हमें असत्य, अन्याय और बुराईका हमेशा प्रतिरोध करना चाहिए। मैं यह नहीं मानता था और अब भी नहीं मानता कि सुधार बुरे हैं या अनुचित हैं, मैं उन्हें उत्तरदायी शासनकी ओर ले जानेवाला एक कदम समझता हूँ। इसलिए में यह नहीं मानता कि वे निराशाजनक हैं, भले ही वे अपर्याप्त और असन्तोषजनक हों। मैं श्री विपिनचन्द्र पालकी इस रायका समर्थन करता हूँ कि मैं सुधारोंको निराशाजनक नहीं समझता; इसका अर्थ यह है कि मुझे उनके पास होने की आशा नहीं थी। मुझे बेशक यह आशंका थी कि [ब्रिटिश संसद में] वे शायद ही पास हो सकें लेकिन वे पास हो गये; और इसी तरह जिस रूपमें वे पहले-पहल प्रकाशित हुए थे उस रूपमें कोई और सुधार हो सकेगा, इसकी आशा भी में नहीं करता था। संशोधनके विरोधियोंने स्वीकार किया कि जब देशके हितके लिए सहयोग करना आवश्यक होगा तब वे सहयोग करेंगे और जब रुकावट डालना उसके हित में होगा तब वे रुकावट डालने में न हिचकिचायेंगे। मैंने जिस संशोधनको हाथमें लिया था निस्सन्देह उसका एकमात्र अभिप्राय यही था। परन्तु विरोधियोंको यह श्रेय देना ही चाहिए कि उन्होंने संशोधनका शक्ति-भर विरोध किया, क्योंकि वे स्पष्ट कहते थे कि बदली हुई परिस्थितियोंमें भी उनका नौकरशाहीपर विश्वास नहीं है। मेरी राय में यह एक गलत रुख है । राजकीय घोषणा अत्यन्त उदार भावनासे तैयार की गई है। वह उदारताको भावनासे परिपूर्ण है, इसलिए सम्राट्की सहयोगकी अपीलका उत्तर न देना कांग्रेसके लिए अनुचित होता। मानव- स्वभाव में मेरा विश्वास अक्षय है और अत्यन्त विपरीत स्थितियोंमें भी मैंने अंग्रेजोंको युक्ति और अनुनय-विनयको मानते देखा है। किन्तु वे जब वस्तुतः अन्यायपर होते हैं तब भी अपनेको सदा न्यायपर दिखाना चाहते हैं, इसलिए उनको लज्जित करके दूसरोंकी अपेक्षा उनसे ठीक काम करा लेना अधिक सुगम होता है। परन्तु कुछ भी हो, घोषणाके रूपमें हमारी ओर मैत्रीका जो हाथ बढ़ाया गया है उसे ग्रहण न करना विवेकहीनता होगी और उससे हम अपनी संस्कृतिसे गिरेंगे। यदि हम शक्तिवान हैं तो सहयोग करनेमें हमारी कोई हानि न होगी। समान उद्देश्यके लिए सहयोगकी तैयारी दिखानेसे हम नौकरशाहीको तुरन्त अनुचित स्थितिमें डाल देंगे।