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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


श्री मॉण्टेग्युको सुधारोंके सम्बन्ध में की गई उनकी सेवाओंके लिए धन्यवाद देना भी हमारे लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण था। इसीलिए माननीय पं॰ मदनमोहन मालवीय, श्री जिन्ना और मैंने यह अनुभव किया कि मतभेदका खतरा मोल लेकर भी हम इस संशोधनको पास करानेपर पूरा जोर देनेके लिए बाध्य हैं। अन्तमें समझौता हो गया; इससे लोकमान्य तिलक और श्री दासके स्वभावकी अच्छाई प्रकट होती है। दोनों अपने विचारोंपर दृढ़ रहते हुए इस बात के लिए चिन्तित रहे कि सभामें मतभेद न हो। उनके इस प्रयत्न और मंचपर इतने लोगों को समझौता करानेके लिए प्रयत्नशील देखकर प्रसन्नता होती थी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-१-१९२०
 

२४३. पत्र : जी॰ ई॰ चैटफील्डको

सत्याग्रह आश्रम
जनवरी ८ १९२०

प्रिय श्री चैटफील्ड,

आश्रमके प्रबन्धक, श्री मगनलाल गांधीने कुछ समय हुआ आश्रमकी गैर-इनामी जमीनपर गोशाला बनानेकी अनुमतिके लिए अर्जी दी थी; लेकिन यह अनुमति अभी-तक नहीं मिली है। इस गोशालाका उपयोग मवेशी रखनेके लिए होगा। मवेशियोंका क्या उपयोग किया जायेगा, इस विषय में शायद कुछ पूछताछ की गई है। अगर यह बात समझ ली गई होती कि इस बस्ती में हमारा मुख्य काम खेतीका है तो यह प्रश्न पैदा ही न होता। हमारी सारी जमीनका जो इस्तेमाल किया जा रहा है उससे यह बात बिलकुल स्पष्ट है। इस समय हमारे पास मवेशी काफी संख्या में हैं। उन्हें ज्यादा दिनोंतक बाड़ेकी उचित व्यवस्था किये बिना रखना खतरे से खाली नहीं है। अतः आप तुरन्त अनुमति प्रदान कर सकें तो में आपका आभारी होऊँगा। आप जब चाहें हम आपको इस बातका इतमीनान करा सकते हैं कि हम मवेशियोंका उपयोग व्यापारके लिए नहीं कर रहे हैं। इन मवेशियोंको हम खेतकी जुताईके लिए, उनसे प्राप्त होनेवाली खाद और खादके अतिरिक्त अपने ही लिए गाय और भैंसोंसे मिलने- वाले दूधके लिए पालते हैं।[१]

हृदयसे आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७०३७) की फोटो-नकलसे।
  1. चैटफील्डने इस पत्रका उसी दिन निम्नलिखित उत्तर दिया : "अगर बात केवल इतनी ही है कि आप अपनी खेतीवाली जमीनका इस्तेमाल गौशाला या मवेशियोंके बाद बनानेके लिए करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। वस्तुतः यदि मवेशी आपकी अपनी जमीनपर इस्तेमालके लिए हैं। तो ऐसी इमारतें फार्मकी इमारतें होती है, और मालगुजारी कानून [एल॰ आर॰ ए॰] के अन्तर्गत मेरी अनुमतिकी कोई आवश्यकता नहीं है।